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। शोर ।

By Kavita Batra


ना बादल कि गरज थी, ना बिजली का शोर था ।

बरस रहा था पानी , जेसे हमारे दिल का शोर था ।


कुछ हमारे दिल के हाल जेसा आज समां था ,

शांत बरस रही थी बारिश जेसे हमारी आखों का शोर था ।


देखती हूं बादल कि तरफ , कि ऐसा क्या किया इस आसमान ने तेरे साथ कि बरस गई तू भी मेरी आखों कि तरह ।

कमी पर अपनी बरसी , या अपने ही आंगन में किसी और का जोर था ।



ऐसा भि क्या वादा किया था ज़मीन से , जो आज तेरा बरस जाना तुझे मंजूर था ।

आसमान तेरा ना हुआ, या बादल के दिल में आज मौसम कुछ और था ।


ना बादल कि गरज थी, ना बिजली का शोर था ।

बरस रहा था पानी , जेसे हमारे दिल का शोर था ।


By Kavita Batra



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