By Kavita Batra
कैसी कशमकश में है यह बंधनों कि मंजूरी, कहीं मनचाहा प्यार है ,
तो वहीं मनचाहा बन्धन से नवाज़ दिया ।
कैसी कशमकश में है यह बंधनों कि परीक्षा, कहीं अनचाहा प्यार है,
तो वहीं अनचाहा बन्धन से बांध दिया ।
कैसी कशमकश में है यह बंधनों की रूसवाई, कहीं मनचाहा प्यार की घुटन के सफर ने ,
उसको अनचाहा बन्धन बना दिया ।
कैसी कशमकश में है यह बंधनों कि डोर,
जिसने हर रिश्ते को बेवजह बजार ए नफरत में नीलाम कर दिया ।
कैसी कशमकश में है यह बंधनों कि ईबादत, जाते तो हैं अपनी खोज में,
फिर ना जाने क्यों अपने सकून को ही , एक बहुत बड़ा मुद्दआ बना दिया ।
कैसी कशमकश में है यह बंधनों के कर्ज, तलाशते हें रब के घर को मन्दिर - दरगाह में,
वहीं जिस घर को बनाया मां बाप के पसीने से , उसी के आंगन को बच्चों ने नीलाम कर दिया ।
सोचती हूं, कि कैसा कशमकश है बन्धन , है तो , कशमकश है,
और वहीं बन्धन ना भी हो तो भी कशमकश है ।
समझ में आया के जीवन में कशमकश , में उलझा हर बन्धन है ।
By Kavita Batra
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