By Dr. P. L. Bharati
हैरान और परेशान हू, जीने मे बडी बाधा है,
कब, कैसे और क्या करू, काम जरा ज्यादा है ।
सफर है हमसफर नही, अभी है पर कल नही,
दोस्त मिले नसीब से, समस्या है पर हल नही ।
जी रहा हू इस धरा पर, मानो जीवन आधा है,
कब, कैसे और क्या करू, काम जरा ज्यादा है । ।
काम नही कर पाता हू, मन की चाहत दब गया,
साथ नही चल पाता तो, रूठकर हमसे सब गया ।
सोचा सबको योग करू, मैंने यह निश्चय साधा है,
कब, कैसे और क्या करू, काम जरा ज्यादा है । ।
नई नई तकनीक आ गये, समझ मे कुछ आता नही,
आधुनिकता की दौड मे, साथ भी चल पाता नही ।
गांव से हिंदी पढकर आये, इंग्लिश भी एक बाधा है,
कब, कैसे और क्या करू, काम जरा ज्यादा है । ।
सोचा था मै भी, कुछ नया तकनीक बनाऊगा,
लोगो के हित मे ही, कुछ चमत्कार दिखाऊंगा ।
हिम्मत तो है करने का, पर साधन एक बाधा है,
कब, कैसे और क्या करू, काम जरा ज्यादा है । ।
काम के ही भार से, लोगो का विचलन देखा है ,
हिम्मत करके आगे बढना, यही तो जीवन रेखा है ।
मै भी हिम्मतवाला हू, भले ही भार ज्यादा है,
काम किया था और करूंगा, काम भले ही ज्यादा है । ।
By Dr. P. L. Bharati
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