By Dr. P. L. Bharati
हिंदी मे जो गहराई है, इसमे जहाँ समाई है,
भारत मे जितनी भाषा है, उन सब का ये माई है।
हिंदी को अपनाकर देखो, स्वरो मे सुरीलापन है,
लिखने मे सरलता है ,और बोली मे सीधापन है।
रस छंद अलंकार सजा के, अपनी मान बढाई है,
भारत मे जितनी भाषा है.......
गद्य- पद्य मे भाव भरी है, करूणा की यह धारा है,
पूर्वजो की अमर कहानी, और हर्षोल्लास की माला है।
अगले और पिछले कर्मो की, राह हमे दिखलाई है,
भारत मे जितनी भाषा है......
दादा- दादी चाचा-चाची, दीदी और भाई है,
अंग्रेजी ने रिश्तो मे भी, हमे बहुत फसाई है।
रिश्ते नाते अलग-अलग है, हिंदी ने ये बतलाई है,
भारत मे जितनी भाषा है...
बडे-बडे रचनाकारो ने, देखा था सुंदर सपना,
भारत के दुर्भाग्य को देखो, राष्ट्रभाषा न बना अपना।
सूर, रहीम, कबीर, त्रिपाठी, जयसी, प्रेम, गोसाई है
भारत मे जितनी भाषा है....
हिंदी मे काम कराकर, हिंदी का मान बढाना है,
अंग्रेजी मे जो कोई लाये, उसको दूर भगाना है।
देशो मे भाषा के कारण, हुआ बहुत लडाई है,
भारत मे जितनी भाषा है.......
By Dr. P. L. Bharati
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