By Bushra Benazir
हाँ तुम धूप हो
ये सर्द रात भीगी ठंडी हवायें
कोहरे का खिङकी के पटो से बारहा टकराना
गर्म मुलायम कम्फर्ट में भी
मेरे दांतो का किटकिटाना
इस मौसम की सबसे सर्द रात
शहर की सङको पे फैंला सन्नाटा
यूँ तुम्हारा मुझे छोङकर
मुक्तेश्वर चले जाना
मेरे इत्मिनान का अचानक ढह जाना
सुनो अगर किसी रोज़
इस सर्द रात में मैं निकल पङी
मेरे ऊपर कोहरे का आसमाँ
मेरे नीचे ज़मीं का थरथराना
कहाँ जाऊँगी किसे पुकारूँगी
ये माना मै किसी क़ाबिल नही
तुम उम्मीद ओ ताबीर हो मेरी
कैसे कहूँ कि क़लम लरज़ता है
तुम्हारे बिना ये शहर सूना ओ ठंडा लगता है तुम जज़्बात की गर्मी हो तुम लफ़्ज़ो की नरमी हो तुम इन कङकङाते जाङो की हल्की मुलायम धूप हो हाँ तुम धूप हो
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By Bushra Benazir
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