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सौन्दर्य पिपासा
By Vijay Prakash Jain
तुम स्वप्न, खुली इन आंखों का,
उपवन की सुन्दरतम कलिका,
या स्वर्ग लोक से आई परी,
सौन्दर्य रूप की हो मलिका,
तुम्हें देख के यह दिल कहता है -
ऐसे मधु मादक यौवन को,
बाहों के घेरों में भर कर,
जीवन अभिमन्त्रित करने दो।
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 1
इस शर्म हया के बन्धन से,
बोझिल पलकों को मुक्त करो,
कम्पित अधरों से काम न लो,
आँखों आँखों में बात करो,
नयना जो मिले नयनों ने कहा -
यह आमंत्रण स्वीकार करो,
अपने मधु मादक यौवन को,
मेरी बाहों में बसने दो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 2
है जीवन का मधुमास समय,
जब तक मोहकता, मादकता,
चंचल चितवन, भ्रामक नयना,
भर देते मन में व्याकुलता,
मैं व्याकुलता से मुक्त रहूँ,
ऐसे मेरा उपचार करो —
अपने मधु मादक यौवन का,
मुझको रूपामृत पीने दो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 3
रक्तिभ लुभावने होंठ तेरे,
जैसे गुलाब के फूल खिले,
कम्पित होते यूँ बार बार,
जैसे वीणा के तार हिले,
कर दो गुंजित स्वर लहरी को,
जिव्हा तल में न बन्द रखो,
अपनी मधु मादक वाणी से,
कानों में अमृत घुलने दो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 4
सावन की बदली गन्ध हीन,
काले केशों की गन्ध सहित,
घुमड़ी बदली से यदा कदा,
हो जाती रोशन रूप तडित,
भीगे शीतल इस आलम को,
अपनी सुगन्ध से युक्त करो,
अपनी मधु मादक खुशबू से,
जल, थल, नभ आदि महकने दो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 5
मन्द पवन के ये झोंके,
जो तुमको छू कर जाते हैं,
काया चुम्बन को बार बार,
झीना आँचल ढलकाते हैं,
कण कण में यह स्पर्धा है,
कि वह पहले तुमको चूमे,
अपने मधु मादक यौवन का,
मुझको भी चुम्बन करने दो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 6
व्यवहार सौम्य शालीन सरल,
धारण कर लज्जा आभूषण,
अंगअंग में अनुपम कोमलता,
अंगअंग का अद्भुत आकर्षण,
मधु मादक यौवन देखा तो,
पुलकित है मेरा रोम रोम,
कहता है मेरा मन पागल,
मुझे धूनी यहीं रमाने दो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो ! 7
प्रतिबिम्ब भाव का दे पाना,
है शब्दों की सामर्थ कहाँ,
भावों की छवि को कर पाया,
न कोई कैमरा कैद यहाँ,
ऐसे मधु मादक यौवन का,
उल्लेख कहां मिल पायेगा,
हैं सभी अधूरे शब्दकोश,
रहने दो शब्दावलियों को.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 8
क्या झील सी गहरी आंखें हैं,
या मदिरा के गहरे सागर,
फिर क्यूं कोई अतृप्त रहे,
सौन्दर्यरूप तट पर आकर,
तेरे मधु मादक यौवन को,
अपनी बाहों में भरने को,
मैं कब से मिन्नत करता हूॅ,
बस मौन स्वीकृति ही दे दो।
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 9
मेरी इतनी ही विनती है,
अनुरोध न मेरा अब टालो,
मुझ में सामर्थ नहीं ज्यादा,
ठुकराओ न मुझको, अपनालो,
कातिल मधु मादक यौवन ने,
ये कैसा आघात दिया,
मेरी हत्या का दोष अरे,
तुम व्यर्थ न अपने सर पर लो.
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 10
है यही प्यास इन आँखों की,
बस रूप तुम्हारा लख पायें,
रक्ताभ तुम्हारे गालों का,
मद, होठ हमारे चख पायें,
बेताब दहकती सांसों का
कुछ ताप शमन कर लेने को,
आ संयम तज, संगम कर लें,
वे लग्न महूरत रहने दो.
तुम भी कुछ तृप्ति पाओगी,
मुझको भी तृप्ति मिलने दो ।
मुझको आलिंगन करने दो !
मुझको आलिंगन करने दो !! 11
By Vijay Prakash Jain