By Varsha Neeraj Choudhary
नारी को समझना वास्तव में कठिन है।मन मिल जाए तो समय व्यतीत होने का पता ही नही चलता है।मनोरंजन और बातचीत होना भी आवश्यक है,लेकिन उसके लिए जरूरी है कि जब बातचीत हो या वाद-विवाद;उससे मनभेद न हो।मतभेद तो होता ही रहता है,कभी- कभी अपने विचारों में भी मतभेद हो जाता है।
किसी परिस्थित विशेष में हमारा मत कुछ और होता है और परिस्थित के बदलाव के साथ हम कुछ और ही
सोचने को विवश हो जाते है।साथ बैठने से मन हल्का हो जाता है,शर्त यह है कि बातों को दिल से न लगाए। जो बात जहां से प्रारम्भ हुई वहीं उसी सभा में उसका अन्त भी हो जाए। परन्तु क्या वास्तव में ऐसा होता है?
मैं स्वयं एक स्त्री हूं। मेरे मित्र बहुत नही। हैं। शायद मित्रों के चुनाव में, मैं बहुत संकीर्ण विचार धारा की हूं।सभी के साथ मेरी बनती नही है। यद्यपि मुझे लगता है कि मेरा स्वभाव खुले विचारों का है।मुझे सबसे बात करना अच्छा लगता है पर मित्रता सबसे नही हो पाती है।जुड़ने का एहसास एक के साथ ही होता है।
इस तरह अपने को समझने का मेरा अथक प्रयास अभी तक जारी है।इसी के साथ विशेष---आभार।
By Varsha Neeraj Choudhary
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