स्वप्न करें इंकार
- hashtagkalakar
- Sep 8, 2023
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By Usha Lal
दिन भर बतियाती रहती थीं,
डाल सदा गलबहिंयाँ !
हमजोली थीं इक दूजे की
स्वप्न , नींद और अँखियाँ !
दिन थे भरे लड़कपन से ,
और रातें जादूनगरी!
हम तिलिस्म में खो जाते थे,
तान स्वप्न की छतरी !
उम्र बढ़ी ज्यूँ ज्यूँ इस तन की,
मन हो गया पराया!
सुन्दर और रेशमी सपने
कहाँ गँवा मैं आया ?
सतरंगी जो स्वप्न बुने थे,
सब बन गये अवांछित,
कुछ जो थोड़े पनप गये थे,
वे भी हुये अपरिचित !
कुछ पलकों से फिसल गये , भर मन में एक विषाद्! किर्च बचीं जो शेष , आज भी फैलाती अवसाद! जिनको भी मैं मूर्त रूप दे, कर पाया साकार! वे भी पूरा होते ही , क्यूँ खो बैठे चमकार ? अब पलकें हैं बोझिल, जो ना मुँदने को तैयार, और अगर निद्रा तिर आये, स्वप्न करें इन्कार!!
By Usha Lal