By Priyanka Mathur
जब तक दोस्ती का मायने समझ पाती
तब तक मैं बहुत दूर निकल चुकी थी...
स्कूल में पढ़ने वाले सहपाठी मित्र और
घर पर साथ खेलने वाली सब सहेली थी..
बात करने के लिये कोई समय सीमा नहीं थी
दिन रात सुबह शाम साथ में व्यतीत होती थी..
वक्त के पहिये के साथ हमारी राह भी चली
मित्र सखा सहेली सबकी अलग हो गई गली..
कोई ब्याह कर ससुराल चली गई
किसी की विदेश में नौकरी लग गई..
व्यस्तता की आँधी और चकाचौंध की बिजली
सब पर अलग अलग तरीके से गिरी..
मोहब्बत के नाम पर मोहपाश के पांसे
दमघोंटू सी सांसें चलने लगी थी...
घर की जिम्मेदारी जब काँधे से झाडी
यादों के गलियारे में पहुँची अपनी सवारी
सुख दुःख की बेला में संग संग जिनको पाया
और कोई नहीं वो था मेरी माँ का साया..!🍁
By Priyanka Mathur
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