top of page

सिसकियां

Updated: Apr 6

By Avaneesh Singh Rathore


अंदर सिसकियां बेहिसाब

अंदर चीखें बेहिसाब

ऊपर से पर शांत मन

कान लगा सुन ले सैलाब


घुट घुट जीता राही मैं

पल पल मरता राही मैं

मंजिल कई तलाश है एक

पग पग हारा राही मैं


सुनते सुनते सब रोते हैं

किस्से मेरे जब होते हैं

कहते कहते चुप हो जाता मैं

भाव मेरे तब कहते हैं


भाप सी उड़ गई है नींद

ओस सी मजबूत लकीर

पत्थर जैसा दिल लेकर

नीर जैसी काया फकीर


कहने सुनने में क्या रक्खा है

ढह गई दीवारें उम्मीदों की

बात बिगड़ती चली गई

झुक जाने में क्या रक्खा है



सही गलत की होड़ नहीं

अच्छे बुरे की बात नहीं

हुई गलती तो क्या बोलूं

माफ करने में क्या रक्खा है


एक कहानी अमर हुई

कलम कहीं नीलाम हुई

हम भी लिख दे एक कहानी

बिक जाने में क्या रक्खा है


दहशत वाली बात हुई

जब हिसाब किताब से शुरू हुई

जब बंटवारे की नौबत है

तो हिस्से लेकर क्या रक्खा है


मेरे हिस्से में क्या रक्खा है

एक तेरी यादों के सिवा

तुझे उसमे भी दिखा प्यार नहीं

तो मुझमें भी फिर क्या रक्खा है


हिज्र हिज्र कहते थे जब

डांट डपट कर चुप हुए

अब कसमें वादे की कीमत क्या

जब रिश्ते ही नीलाम हुए


हमसे छुपता न प्रेम सदा

न हमसे छुपेगा फरेब सदा

एक गैर मुसाफिर खातिर

तुमने हमसे ही फिर झूठ कहा


By Avaneesh Singh Rathore



4 views0 comments

Recent Posts

See All

The Unfinished Chore

By Ambika jha Everything is now in balance Stands steady, holds its grace The furniture is dusted, teak wood glimmers all golden and fine...

The Art Of Letting Yourself Go

By T. Pratiksha Reddy If I were to be murdered, I’d ask my killer- “Will it make you happy? Because if it will Then I welcome death With...

A Symphony Veiled In Blight

By Praneet Sarkar In twilight's embrace, a tempest rages, Beneath the stars, our passion engages. With lips aflame, and eyes of frost, We...

留言

評等為 0(最高為 5 顆星)。
暫無評等

新增評等
bottom of page