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सलीका

By Dr. Devendra K Prajapati


कितना मनोहर सलीका चाहिए, परदे में पर्दा नज़र आने के लिए।

तुझे जहाँ को दिखाने के लिए, तुझे जहाँ से छुपाने के लिए।


एक बेचारे चेहरे पर इतनी सारी बंदिशें।

हँसना नज़र भी आना है, हँसते हुए नजर आने के लिए।


दौर ए महफिल से ये उम्मीद ना थी यकीनन।

याद भी ना आएगी, इक चले जाने के बाद।


क्या खबर वक्त के चेहरों का बदले कब अपना मिजाज़।

फिर इतना आसान भी तो ना रहेगा, मेरे लिए।

बेवक्त यूं घर लौट आने के लिए।


तेरी बात के एहसास का भरम कोई संयोग तो नहीं।

शायद, यूं मुकम्मल तो होगा, तेरा होना भी, कहलाने के लिए।


जहाँ में डूबा ये किरदार उभरे अगर खुद के जहां में।

भूल जायेगा हरेक पहचान, इसके लिए उसके लिए।


तेरे एक महकमे के शोरगुल से क्या होगा।

बात तो ये है कि तेरी आवाज से कोई पहचान बदले।


By Dr. Devendra K Prajapati


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