top of page
  • hashtagkalakar

सरे आम

By Vikas Rajoriya


ना कहा कभी उसने की चाहते है तुम्हे, ना अलफ़ाज़ उसके कभी हमारे नाम हुए |

देखते ही रह गए हम उनकी वफ़ा का अटूट सिलसिला, जज्बातों को उनके हमारे सलाम हुए ||





बदल गया रंग दरिया का हमारी प्यास देख कर, जो सूखे हमारे जाम हुए |

चलते चलते रुकते रुकते न जाने कब सुबह - शाम हुए ||


और एक वो थे जो कभी न खिले फिर न जाने क्यों गुल्फ़ाम हुए |

और एक हम है जो हुए भी तो भरे बाज़ार सरे आम हुए ||

By Vikas Rajoriya






1 view0 comments

Recent Posts

See All

By Laxmi Guria Sparkling on this haunted tower, like a lamp in the morning hour, nothing seems to come as if, everything goes into devour. Doesn’t have a magic hair, not even a mother to call when it

By Prakash Kumar Shukla हर ख्वाब - दुआ - अर्ज़ी में तेरा ही नाम लेता है , जरूरतें और हैं उसकी , चाह और भी हैं। हो गमसदा तो लिपट जाती है किसी दामन से , महज़ मैं नहीं उसका, उसपे पनाह और भी हैं। मैं अके

By Laxmi Guria चेहरे से तेरे दीदार था मेरा, किसे पता था इतनी जल्द आएगा सवेरा, नीला था पहनावा तुम्हारा, लाल हो गया यह मुखड़ा भी बेचारा, न जाने किस राज़ की बात है यह अनसुनी , क्या इस राह में हमसे टकराना च

bottom of page