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सरे आम
By Vikas Rajoriya
ना कहा कभी उसने की चाहते है तुम्हे, ना अलफ़ाज़ उसके कभी हमारे नाम हुए |
देखते ही रह गए हम उनकी वफ़ा का अटूट सिलसिला, जज्बातों को उनके हमारे सलाम हुए ||
बदल गया रंग दरिया का हमारी प्यास देख कर, जो सूखे हमारे जाम हुए |
चलते चलते रुकते रुकते न जाने कब सुबह - शाम हुए ||
और एक वो थे जो कभी न खिले फिर न जाने क्यों गुल्फ़ाम हुए |
और एक हम है जो हुए भी तो भरे बाज़ार सरे आम हुए ||
By Vikas Rajoriya