By Kushagra Singh
शंकर का डमरू वादक हूँ मैं नीलकंठ का नीलम भी
चंदन हूँ हल्दीघाटी का कश्मीर धारा का झेलम भी
वात्सल्य गीत का राजा हूँ वात्सल्य गीत दोहराता हूँ
तान मधुर बंसी कान्हा की, उस मधुर गीत को गाता हूँ
कथाकार हूँ प्रणय काल का, षड़यंत्र पुनः दोहराता हूँ
रूधिर बोझ से दबा हिमालय, मैं कथा अश्रु की गाता हूँ
मेरी धरा का वक्ष चीर कर सीधे मस्तक पर प्रहर किया है
बारूद गिराकर माँग सजा दी और बंदूकों से श्रंगार किया है
ये वाग्जाल मे कसने वाले या वसुधा को ङसने वाले
धमकी जिहाद की देने वाले या कश्मीर हज़म कर लेने वाले
विजय मंत्र को गाने वाले परचम मृत्यु का लहराने वाले
कब जानेंगे अखिर आज़ादी क्या होती है
जिन्ना के टुकड़ों पर पलने वाले
कब जानेंगे आखिर बर्बादी क्या होती है
बज गए मृदंग बज गए नगड़े
गूँज रहीं है रणभेरी बज गए महा मृत्यु के बाजे
एक ओर जहाँ दुश्मन की तोपों मे भी गोले होंगे
इधर खङे हर एक सिंह की छाती में भी शोले होंगे
एक ओर जहां उनकी मस्कट में भी गोली होगी
इसी ओर से प्रमुदित होती वो इंकलाब की बोली होगी
एक ओर जहाँ राहु राह देखता होगा
राह रोकती इधर खड़ी वो महाकाल की टोली होगी
आज या गंगा की धार रहेगी या नौका की पतवार
सम्मुख समक्ष से स्वप्न लड़ेंगे मानो जल में अंगार
आज या लाहौर रहेगा या दिल्ली की दीवार ।
जब धरती अम्बर के संग होले
जब सोम सूर्य के संग डोले
जब नीर जलादे तिनके को
या अग्नि जीवन स्वर बोले
उस क्षण तक लड़ते है वितुण्ड शंकर के
मृत्यु के जो नेता है जो मस्तक नहीं झुकाते है
यदुनंदन के सेनानी, कोदंड लिए जो अर्जुन की भाती आते है
भूखंड धारा के सेनानी पर झुक कर कुसुम चढ़ता हूं
तेज अटल मृत्यु से ज्यादा उनको पुनः जागता हूं
श्रृंगार आंख में ऐसा दिव्या व्योम ललित दिनकर के जैसा
काल बंदी जो बने धरा पे उनको प्रखर पुंज कहलाता हूँ
कथाकार हूँ प्रणय काल का, षड़यंत्र पुनः दोहराता हूँ
रूधिर बोझ से दबा हिमालय, मैं कथा अश्रु की गाता हूँ
By Kushagra Singh
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