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शायर की कलम थमी

By Khushi Chaudhary


अंदाजा लगा सकते हो?

अगर, एक शायर की कलम रुक जाए तो क्या हुआ होगा?

हो सकता है आ रहे तूफान का आगाज़ कर रहा हो

दुनिया बरबादी पर खड़ी,

ज़मीन की गहराइयां उभर कर दिखें

या पास हो कायनात के छिपने की घड़ी।


हो सकता है बारिश की बूंदों की परछाइयां टपकें

हवाओं का रुख बदल जाए,

सूरज आसमान में अंधेरा छिड़के

या फिर सितारों का नूर चांद के बिना ही नज़र आए।


हो सकता है दिन के बदस्तूर ना ढलने का अंदेशा कर रहा हो

या अपने सबसे डरावने सपने में गुम हुआ,

या हो सकता है

ऐसा कुछ ना हुआ हो

क्या खबर उस शायर को प्यार ही हुआ।


क्योंकि उस ढलती सांझ में

जब उसका रूहानियत भरा चहरा मैंने देखा - मेरी कलम थम गई

वो मेरी सियाही से गद्दारी का सहारा हो गया,

मेरी जिंदगी के सैलाब की कश्तियों को राह दिखाता

ना जाने कब किनारा हो गया।


जब भरी भीड़ में

उसकी निगाहें सिर्फ मुझपर आ टिकी

मेरी सांसें रुक गईं।

अगले ही पल

जब मुझे देख वो मुस्कुराया,

ना जाने कैसे पर नजरें खुद-ब-खुद झुक गईं।





नवाजिशें भरे कदम मेरी ओर जब बढ़े

हर नस कांपने लगी,

समय की उस रफ्तार को रोकने के लिए


फिर जुबां बहाने भांपने लगी।


हाथ मेरे सामने था

उसकी पलकों पे नाम का सवाल,

बस!

कहानी वहीं ही खत्म हुईं,

सपनों में बिखरा था, ये आरज़ूओ का गुलाल।


ख्याबों से उठी तो कलम रुक गई

वजह उस अनजान मुसाफिर से जुस्तुजू थी।


चहरा उसका नजर ना आया पर नूर था इतना कि एक शायर को उसकी शायरियों के लिए खुदगर्ज बनाया।


हो सकता है वो अपने अंदर के ज़माने में उलझा हो

कागज पर कुछ उडेल ना पाए,

कलम थमने का कारण सिर्फ तबाही नहीं होती

क्या खबर उस शायर को किसी से प्यार ही हो जाए।



By Khushi Chaudhary




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