शांत हो रहा हूं!
- Hashtag Kalakar
- Oct 13
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By Saksham Raj
लहजे को अपने धीमा रखता हूं
पता नहीं मैं अब कैसा लगता हूं
राह ताकना अब अच्छा नहीं लगता
फिर भी दरिचे पर बैठा करता हूं
बोलता कम हूं यहाँ मैं आजकल
मगर खुद से कुछ बकता रहता हूं
अभी ज़िंदा हूं तो ठीक है वरना
प्यार में देखना मैं कैसे मरता हूं
झूठ के भरम से तो वाक़िफ़ था मैं
फिर मैं इस सच से क्यों डरता हूं?
सुकून से बे-इल्म बन रहा हूं 'क़ाबिल' अब
धीरे धीरे सही,महफिलों से उठता हूं
By Saksham Raj

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