By Gursharan Singh Shah
मेरे हाथ लगा हर कागज...
तेरे बिछड़ने की नुमाइश करता है...
कभी तेरे हाथ भी लगें वो कागज...
दिल ये मेरा ख्वाहिश करता है...
भरोसा नहीं होता किसी पर भी...
भरोसा नहीं होता किसी पर भी...
कोई सच्ची दोस्ती भी निभाए तो लगे कि...
आज़माइश करता है...
यादों का बोझ लेकर बस चलते जा रहे हैं
जेसी उसकी रज़ा..
बेवफाई से ज्यादा सच्ची मोहब्बत में मिली सजा..
जहान-ए-इश्क तो हार ही चुके हैं...जहान-ए-इश्क तो हार ही चुके हैं...
अब दौर-ए-दुनिया जीतने में क्या मज़ा...
चल आज मेरे प्यार का चुकता कर्ज़ करा दे...
वादे तो मोहब्बत के निभाए ना गए... तू इतना कर अपने फ़र्ज़ निभा दे...
अरे अब तो कलम भी कहने लगी तेरे बारे में...
अरे अब तो कलम भी कहने लगी तेरे बारे में...
कि उसके बारे में सोच और कर अरज़ सुना दे…
By Gursharan Singh Shah
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