वृक्षों के बीच चलता हूँ
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Himadri Das
वृक्षों के बीच चलता था,
मानव इस युग का,
धीरे-धीरे बढ़ता गया,
दंभ उस कायर का,
नक्शे उसने बनाए,
बनवाया अपना देश,
पर्वत से लेकर,
नीचे नदी तक,
था उसका देश।
दूसरा मानव देखता गया,
अन्याय जो होता गया,
पर्वत की नोक से लेकर,
स्वर्ग के द्वार तक,
खींची अपनी विद्वेष की रेखा,
तलवारों की आवाज़ों से,
मौन हो गए सारे जीव,
शरीरों से सुसज्जित,
खून से श्रृंगार कर,
सजाया गया उनका देश,
बंदूक की गर्जना से,
परमाणु की चीख तक,
तू झेलेगी कितना और?
दंभ की यह कहानी खत्म कर,
कलम उठा,
मिटा उन सबको,
तेरे पृथ्वी के हत्यारों को l
आज में तुझ से पूछता हूँ ,
तू क्यों सहती है इतना?
चुप रहकर तूने दिखा दिया,
अपने मन की दुर्दशा l
By Himadri Das

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