By Suyash Tripathi
स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर बने किताबघर के अंदर एक आदमी दस साल से न खरीदी गई रोमियो जूलियट की किताब से मक्खियां उड़ा रहा था। आजकल किताबें कोई खरीदता नहीं सो उसने दुकान ने एक तिहाई हिस्से में खान पान का समान सजा रखा था और बचे हिस्से में दो तीन दर्जन किताबें और अखबार। मक्खियां उड़ाते उड़ते अचानक उसकी नज़र सामने रोमियो जूलियट पर पड़ी। जूलियट अपनी बालकनी में नहीं बल्कि रेलगाड़ी के अंदर खिड़की पर बैठी हुई थी और रोमियो बाहर प्लेटफार्म पर खड़ा उससे बातें कर रहा था, वो उसे विदा करने आया था। दरअसल जूलियट अपने किसी काम से उस शहर आई थी। जूलियट की ट्रेन आने के पांच घंटे पहले रोमियो को जब इस बारे में पता पड़ा तो वो उससे मिलने तुरंत जा पहुंचा। इन पांच घंटों को दोनों ने साथ में बिताया। वो चले, बैठे, कॉफी पी, पुरानी यादें ताज़ा की, हंसे, खामोश रहे और स्टेशन आ पहुंचे। उसके आने की खबर रोमियो तक पहुंचाने वाली खुद जूलियट थी। दरअसल वो उससे मिलकर ये जानना चाह रही थी कि क्या रोमियो उन दोनों के बिछड़ने या रिश्ते टूटने की पीड़ा से उबर पाया है। रोमियो ने उसको निराश किया। वो अब भी जूलियट के प्रति उतना ही प्रेम रखता था जितना कि शेक्सपियर ने अपने नाटक में दर्शाया था। हां उसमे इतना बदलाव जरूर आ गया था कि वो अब अपने उस भाव से सहज हो गया था, उसे अब जूलियट से कोई आशा नहीं थी, वो अब स्वतंत्र प्रेम की राह पर चल रहा था।
गाड़ी चलने की अनाउंसमेंट होने लगी। रोमियो के मन में अब भी कुछ सवाल थे जो जूलियट के जाते जाते वो पूछना चाहता था। अमूमन कई सवाल आशिकों के मन में रह ही जाते हैं। बुजुर्ग होकर मरते ही वो सवाल पुनर्जन्म ले लेता है। उन सवालों को पूछने का साहस कोई करता नहीं सो ये सिलसिला यूं ही चलता रहता है। बहरहाल जूलियट साहिबा के इतना कहते ही कि –“और कुछ कहना चाहते हो या अलविदा कहें? ट्रेन चलने लगी है।“
टीटी ने हरी झंडी लहरा दी थी, पहिए घूमने लगे थे। तभी रोमियो साहब के मुंह से एक प्रश्न अंकुरित हो उठा – “जूलियट! हमारा रिश्ता बड़ा ही अजीब है, हम प्रेमी नहीं हैं मगर दोस्त भी नहीं हैं। हां मैं तुम्हारा आशिक ज़रूर हूं, मगर तुम मेरी क्या हो?”
ट्रेन रफ्तार पकड़ रही थी, रोमियो ट्रेन की रफ्तार से प्लेटफार्म पर तेज़ चल रहा था। उसके कान जवाब जानने को बेचैन थे। तभी जूलियट ने मुस्कुराते हुए कहा – “ मैं तुम्हारी कहानी हूं रोमियो!”
By Suyash Tripathi
Comments