By Srishti Gupta
मैं खोई थी सन्नाटों में
उन बर्फीली सी रातों में
एक बात बड़ी अनजानी थी
पर खुद में जानी पहचानी थीं
मैं आधी रात को जाग उठी
कुछ समझें बिन बस भाग उठी
मैं थी थोड़ी इठलाई सी
कुछ गुमसुम सी, घबराई सी
वहां काला घना अंधेरा था
बस मैं और मेरी परछाईं थी
फ़िर जानें क्यूं घबराई?
गहरी थी वो रात मगर..
उससे गहरी परछाईं थी।
जब सबने अकेला छोड़ दिया
तब मैं और मेरी परछाईं थी!
By Srishti Gupta
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