यार वक्त
- hashtagkalakar
- May 12, 2023
- 1 min read
By Nishant Saini
यार वक्त अब थोड़ी देर ठहर भी जा,
थक गया हूं, थोड़ा सा शुस्ता तू भी जा।
के कंधे दुखने लगे हैं औरों को संभालते संभालते,
मुझे तो खुद ही संभलना है, तू कुछ अब मेरी भी समझ जा।
तेरे गुजरते हर पल के बदलते रूप से थोड़ा गबरा सा रहा हु मै,
के तू इतना बदला है, थोड़ी देर के लिए तू रुक कर फिर बदल जा।
के रफ्तार तू जैसे जैसे पकड़ रहा है हर मंजर भी बदल रहा है,
के किसी मंजर को तो जी भर जिलू, बस एक मंजर के लिए थम जा
हर घड़ी पुराने खास अपने छूट रहे है, तो हर घड़ी कुछ नए अपने बन रहे है,
बस पूरानो को भूल जाऊ, नए को समझ जाऊ, बस इतनी घड़ी रुक जा।
कभी आ बैठते हैं दोनों साथ चाय पर फुर्सत से,
मैं तो इतने में हार गया, तू कुछ अपनी सुना जा।
के कुछ खास गिले-शिकवे है नहीं मेरे किसी से,
बस एक दर्द बसता है दिल में, इस दर्द का ही इलाज बता जा।
पैरों में तेरे छाले पड़ जाएंगे के, यार वक्त रुक भी जा,
अपने लिए भी थोड़ा वक्त निकाल, के कुछ देर तो सुकून से बैठ भी था।
By Nishant Saini
Comments