By Sunaina Arora
मैं कुंती पुत्र होकर भी कुंती पुत्र न रहा |
मैं पांडवो की गिनती में हमेशा. एक कम रहा |
सूरज का अंश में, योद्धा में निपुण था |
सूर्यपुत्र कर्ण में, ब्राह्मणों में एक मात्र क्षत्रिय था |
गुरुद्रोण का ठुकराया में,श्रापित शिष्य में पशुराम का |
वचनों से प्रभावित में, वचनों को ही सर्मपित था |
सूर्यपुत्र कर्ण में, ब्राह्मणों में एक मात्र क्षत्रिय था |
वचन से बंधा था, मैं अपनी ही मां के ,
कि गिनती कम न होगी उसके पुत्रों की स्वीकार ले |
अंत स्वयं का ज्ञात था ,फिर भी में अडिग मित्र घर्म पर ,
न ली होती प्रतिज्ञा मैंने, तो दृयोंधन की मित्रता का ऐसा ऋण चुकाता में |
पांडवो के खून से उसका राज्य अभिषेक कराता में |
वीर अलौकिक था में, धनुर्धर सर्वश्रेष्ठ था |
जिसके सारथी स्वयं केशव हो, वह रथ भी मेरे बाणों से दो कदम पीछे था जा गिरा |
इन्द्रः भी जिसकी याचना करे, मैं ऐसा शूरवीर था |
सूर्यपुत्र कर्ण में, ब्राह्मणों में एक मात्र क्षत्रिय था |
श्रापों की घ्वनि का प्रहार तेज हो गया |
गुरुश्राप सत्यपरायण होते मुझे आज था दिख रहा |
जब कुरूक्षेत्र की भूमि में मेरा रथ जा घसा |
मृत्यु मेरे समीप है, इस बात का
प्रतिबिंब था, मैंने किया |
परंच मैं एक योध्दा हूँ, अतः प्रयत्न मेंने आखिरी क्षण तक किया |
सूर्यपुत्रकर्णमें, ब्राह्मणोंमेंएकमात्रक्षत्रियथा |
By Sunaina Arora
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