By Ameya Aanand
चलो सत्य और शौर्य का, एक टुकड़ा आज दिखाती हूँ,
जो छिप गया है कलयुग में, उस मुखड़े से मिलवाती हूँ,
जो ना हो सका नर के हाथ, मैं उसमें हाथ बटाती हूँ,
पीछे रहकर भी इस जग को, आगे मैं बढ़ाती हूँ,
जग का हूँ आज भी मैं, मैं ही कल बन जाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ ।
ब्रह्मा जिससे करे सृजन, मैं वह ज्ञान बताती हूँ,
रचना का आधार हूँ मैं, मैं सरस्वती कहलाती हूँ,
विष्णु जिससे करते पालन, साधन वह बन जाती हूँ,
पोषण का आहार हूँ मैं, लक्ष्मी बनकर आती हूँ,
शंकर जिससे नाश करें , वह शक्ति भी बन जाती हूँ,
शक्ति सी ही जननी मैं, जीवन का स्रोत बनाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
संतान की जब भी हानि हो, मैं पार्वती हो जाती हूँ,
आर्य पर विपदा आन पड़े, तो सावित्री बन जाती हूँ,
शंकर का जब हो अपमान, सती बनकर जल जाती हूँ,
असुरों का जब पाप बढ़े, काली बन कर मिटाती हूँ,
भस्मासुर को भस्म करे, वही मोहिनी हो जाती हूँ,
महिषासुर का करने नाश, दुर्गा बन आ जाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
रघुवर का जब स्रोत बनू, तो कौशल्या हो जाती हूँ,
मारुति की भी जननी मैं , अंजनि कहलाती हूँ
शबरी सा धीरज है मेरा, टूट कर जुड़ जाती हूँ,
उर्मिला सा त्याग हूँ मैं, लाखन का शौर्य बढ़ाती हूँ,
माँ सीता सा चारित्र हूँ मैं, राम को पूर्ण बनाती हूँ,
हाथ लगाए जब रावण, तो मैं ही अग्नि हो जाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
जो पापों का भी नाश करे, वह गंगा बनकर आती हूँ,
गांधारी सा तप है मेरा, तम को रोशन कर जाती हूँ,
कुंती की करुणा हूँ मैं, अर्जुन सा वीर बनाती हूँ,
अधर्म धर्म पर वार करे,मैं द्रौपदी हो जाती हूँ,
शिकंडिनी सा शौर्य मेरा, रण में कौशल दिखलाती हूँ,
जो गीता का भी ज्ञाता है, उसकी राधा बन जाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
रण में सारे वीर मरे, तो जौहर में जल जाती हूँ,
जो ठान लूं गर मैं जीतना, तो अहिल्या हो जाती हूँ,
वीरों से कहीं कम नहीं, मैं वीरांगना कहलाती हूँ,
मुगलों की जब नज़र पड़े, दुर्गावती बन आती हूँ,
माटी पर कोई आँख उठाये, झांसी वाली बन जाती हूँ,
अंग्रेज़ों से लोहा लेने, मैं चेनम्मा हो जाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
सनातनों की धरती मैं, भारत माता बन जाती हूँ,
विद्यवति सा गौरव है, भगत सिंह बनाकर जाती हूँ,
अंतरिक्ष को भी नाप लूँ, वो कल्पना हो जाती हूँ,
खेलों में जो नाम करे, तो मंधाना बन जाती हूँ,
आकर्षण का केंद्र बनू, तो ऐश्वर्या हो जाती हूँ,
सुर तान आलाप करूँ, लता बन गा जाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
गर्भ से ही जो प्यार करे, वो माँ बन कर आ जाती हूँ,
जब प्यार ज़रा सा कम लगे, मैं बहन बन दिखलाती हूँ,
अधूरे जब तुम पड़ जाते, पत्नी सा पूर्ण बनाती हूँ,
और माँ जैसा प्यार दिखाने, फिर बेटी बन कर आती हूँ,
छोड़ अपने ही घर को मैं, अपना ही घर सजाती हूँ,
दुख में मैं और सुख में मैं,आखिर तक साथ निभाती हूँ,
जीवन का आयाम हूँ मैं, मैं नारी कहलाती हूँ।
By Ameya Aanand
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