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मेरी नज़र के सामने

By Vinod ( Prem Sagar )


 ग़ज़ल-1

होता नहीं कुछ भी असर उसके असर के सामने 

हर कहीं रहता है वो मेरी नज़र के सामने


सुन रहे हो तुम ग़ज़ल ये तुम्हारा है वहम

 मैं इबादत कर रहा हूँ उसके दर के सामने


ऐसा नहीं कि दुश्मनों का कुछ असर हुआ नहीं, 

आ तो रहा हूं और ज़्यादा मैं निखर के सामने


खौफ़ के साय में तिरी जिंदगी फिर जाएगी,

 तू जरा सा झुक गया गर अपने डर के सामने


चाँदनी जाती नहीं है अब मेरे घर से कभी,

 खुद चाँद रहने आ गया मेरे घर के सामने


                                           - प्रेम सागर


 

ग़ज़ल -2 


कान के झुमके, होठ की लाली, तन का संदल हम दोनों

 दुल्हन के माथे की बिंदिया, आँख का काजल हम दोनों


पर्वत की चल पीड़ा पीकर आँसू आँसू हरा करें,

 गाँव गाँव में माँ बहनों का मैला आँचल हम दोनों


वक्त के गाल पर सदियों ने, जो चाहत के नाम लिखें

 धूप, हवा, अंबर और सागर धरती-बादल हम दोनों


सर्दी से चल हम बचाएँ फूल पे शबनम के मोती को,

जनवरी की सर्द हवा में, धूप का कंबल हम दोनों


अब तो धसते ही जाना है हम को मरने तक इसमें 

प्यार मोहब्बत, व चाहत का गहरा दलदल हम दोनों


कच्चे धागे टूट न जाए, प्यार मोहब्बत वालों के,

बनके शिकवा हो जाए, आँख से ओझल हम दोनों


खुद का खुद को होश कहाँ है घड़ी कहाँ है पर्स कहाँ है 

प्यार में शायद हो चुके हैं आधे पागल हम दोनों



                                               - प्रेम सागर


 ग़ज़ल -3


वो है जुदा जमाने से उसकी अदा कुछ और है

 न चाँद सा न फूल सा उसको मिला कुछ और है


चादर तिरी याद की सो जाऊ मैं लपेटकर, 

अहसास तेरे साथ का देता मजा कुछ और है


कागज़ पर उसकी आँख के,आँसू नहीं बयान है,

 उसका गिला कुछ और है,उसमें लिखा कुछ और है


गुनाह तुझसे प्यार का, क्या खूब मैंने कर दिया,

 न कैद है न रिहाई है, मेरी सजा कुछ और है


मर जाएगा हुनर मिरा बेबसी की मौत से,

हक आज तक मिला नहीं ,जो भी मिला कुछ और है



                                           - प्रेम सागर


ग़ज़ल -4


गीत लिखूं या ग़ज़ल कहूं तेरी ही मैं बात करूँ

 तुझे हंसा दूं फूल खिला दूं खुशबू की बरसात करूँ


जिद  पकड़ ली बेटी ने चंदा मामा दिखलाओ, 

चाँद बनाकर कागज पर दिन में ही मैं रात करूँ


चलो चाँद का ब्याह रचाए ताँरों को भी साथ बुलाएं

 फूलों की डलिया इक लेकर, आगे मैं बारात करूं


मुझसे पूछे तू गर, चाहत का क्या मौल है,

 इक तरफ मैं आँसू कर दूं, इक तरफ कायनात करूँ




                                           - प्रेम सागर


ग़ज़ल -5

तन पे कपड़ा सर पे छत, हो रोटी घर-घर कर दो न,

 इस दुनिया में हर इंसा को एक बराबर कर दो न


फूल से बच्चे बोझा ढोते, कलियों के बाजार सजे,

 देखा जाए न मुझसे ये सब,आँखें पत्थर कर दो न


ऊपर ऐसा कोई नहीं है, जां लेकर जो खुश होता हो,

 कुर्बानी फिर भी देनी हो, आगे यह सर कर दो न


मेरे बिन न जी पायेगी, उसके बिन मैं मर जाऊगाँ,

 हम दोनो का मेरे रब्बा, एक मुकद्दर कर दो न


हीरे मोती माँग रहे जो, देदो उनको तुम मौला

 क्या मांगू मैं ज्यादा तुमसे, बाजू को पर कर दो न 


जो लफ़्जों के हीरे मोती गीत ग़ज़ल में रखते हो 

नाम मोहब्बत के यह दौलत "प्रेम सागर " कर दो न 



                                           - प्रेम सागर


ग़ज़ल -6


फूल, खुशबू, आँख, दर्पण, चाँद चांदनी में और तू 

नैना, काजल, धरती, बादल, राजा रानी मैं और तू


जी करता है खुशबू बनकर इस मौसम में घुल जाए, 

रात नशीली, धूप गुलाबी, शाम सुहानी, मैं और तू


हर नग़में हर अफ़साने में तेरी मेरी बातें हैं,

दिल से दिल की रीत पुरानी नई कहानी मैं और तू


मैं सागर हूँ तू नदिया है चल धरती की प्यास बुझाये

 छम छम कर अम्बर  से बरसे बनकर पानी मै और तू 


कर दे चाहे ख़ाक जमाना किसी शाख़ से फूट पड़ेंगे 

बनकर दोनों अमर रहेंगे प्रेम निशानी मै और तू …..



                                           - प्रेम सागर



ग़ज़ल -7



काँच के टुकड़े हीरे मोती,  काग़ज़ का घर महल बराबर,

 घोड़ा-गाड़ी मछली-रानी काग़ज़ का घर महल बराबर


रफ्ता-रफ्ता नौंच रही है, उम्र की चिड़िया ख़्वाहिशें, 

बचपन दे-दो ले-लो जवानी काग़ज़ का घर महल बराबर


चटनी रोटी हाथ के उसकी, पकवानों सी लगती थी,

काजू पिस्ता मेरी नानी, काग़ज़ का घर महल बराबर


न मंजिल न रस्ता कोई कैसी बदहवासी है

 हर चेहरे पर याद पुरानी काग़ज़ का घर महल बराबर


कुछ माचिस के खाली खोके ,कुछ टूटे फूटे से खिलौने,

 बचपन तेरी वही कहानी काग़ज़ का घर महल 



                                           - प्रेम सागर


ग़ज़ल -8


चन्दा सूरज सारे तारें 

इक आँसू से कितने हारे 


अब भी तुझको रब कहूँ क्या

तूने बच्चे भूख से मारे 


दोनो जैब में पत्थर भरकर

दरिया मेरा नाम पुकारें


जुगनू, तितली, भंवरा,जीता

सोना, चाँदी, मोती, हारे 


वहम की छत पे जो बैठा हो

उसको नीचे कौन उतारें


बुरी नज़र थी किसपे डाली

 आईना मुझको धितकारे 

                                                     

                                                   - प्रेम सागर



ग़ज़ल -9


मुस्कान लबो पे आई थी, आँख में आया पानी जब

पहले-पहले गोद में, आई बिटीयाँ रानी जब 


लग रहा था है-न ऐसा , रात दीवाली की सच में

 इस दुनियाँ में आई थी, अपनी प्रेम निशानी जब


बुखार एक-सौ-तीन हुआ था सर्दी खाँसी बाप-रे-बाप 

 जान हलक में आ फसी थी बिमार पड़ी थी रानी जब


उसकी स्कूल का मैं भी बच्चा बन जाता हूँ

 पाठ पढ़ाती है मुझको बन के मेरी नानी जब


किसी गैर के हाथ पें रख  दूंगा दिल का टुकड़ा

 रुक जाए न साँस कहीं, दूँ मैं ये कुर्बानी जब


एक दौहा

टीस उठे उस ओर से, शूल चुभे इस ओर 

डोरी है इक प्रेम की, उसके हम दो छोर 

    

                                           - प्रेम सागर

ग़ज़ल-10


चाँद,बादल, नदिया,सागर,फूल संदल की किताब 

ग़ज़ल समझ के पढ़ते हैं सब बूढ़े पीपल की किताब


बस्ती बस्ती बूढ़ी अम्मा, पूछ रही है एक सवाल, 

पढ़ने वाला कौन बचा है, मैले आँचल की किताब


हाथी भूखा सोता है अब, शेर घास खाता है, 

इंसानों को कोसे रोए, हाय जंगल की किताब


पनघट पर क्या बातें होती मेरे बारे में वो सब कुछ, 

एक-एक राज मुझे बताएं टूटी पायल की किताब


मछली झाड़ पे बैठी है, साधू बैठा धूनी रमाए,

तस्वीरें लेकर वो देखो आई बादल की किताब


ज़हन को रोशन करने वाली इल्म की इस देवी को,

सारे ज़ाहिल  मिलकर बोले काले काजल की किताब


हर्फी को फूलों पर लाए लफ़्जों को पलकों पर बिठाया, 

" प्रेम सागर" नमने लिख दी कैसे ये मखमल की किताब.        


 By Vinod ( Prem Sagar )



          


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Inspector ruben
Inspector ruben
12 feb
Valutazione 5 stelle su 5.

Wow bhaiya wow 👌

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bhupendramalviya202
11 feb
Valutazione 5 stelle su 5.

Well done 🌸🌸🌸

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Deepika Deepika Verma
Deepika Deepika Verma
11 feb
Valutazione 5 stelle su 5.

Great work

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prem sagar
prem sagar
10 feb
Valutazione 5 stelle su 5.

aap sabhi ka bahut sukriya

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Chahat Verma
Chahat Verma
09 feb
Valutazione 5 stelle su 5.

Nice bahut badhiya

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