By Kavita Batra
वो शक्स मुझे मोहब्बत पर यकीन दिलाता जा रहा है ,
जुबां पर मेरे इकरार को ना जाने क्यों,
करवाता जा रहा है।
उसकी मुलाकातों से होते हुए ,
अपने शहर में वापस आना ,
उसी का नूर ना जाने कैसे ,
साथ रहता जा रहा है ।
कभी जो सांस लेना भूल गया था,
जिस्म में ना जाने कैसे,
वो जान भरता जा रहा है ।
वो रूह में बस जाने कि बात करता है ,
ना जाने कैसे ,
अब वो मेरा सूकून बनता जा रहा है ।
कहता है ,
कि सफर यह एक पल का नही,
और आज का भी नही,
वो ना जाने कैसे मेरे सफर का ,
हमसफर बनता जा रहा है।
नापाक उसके इरादे नही,
नापाक उसके इरादे नही,
और ना जाने कैसे ,
वो मेरा महफूज़ ठिकाना बनता जा रहा है।
By Kavita Batra
Maza aa gya
To good
Kya baat hai