By Dr. Devendra K Prajapati
एक भंगुर सा बदन,
एक कमजोर मशाल है।
क्या रूप देखेगा जमाना,
जब मुश्किलों का जाल है।
सुनने लगोगे खूब ऊँचे,
क्या कोई रह जाएगा।
वाक्य भी जब शब्द बनकर,
तुमसे ही बतियाएगा।
क्या कहोगे दुनिया को फिर,
वो नही रह जाएगा।
एक किस्सा उसका भी क्या,
तुम कहीं गुनगुनाओगे।
या फिर उसकी दास्ताँ को,
खुद ही सहते जाओगे।
क्या कहोगे राज में उसके,
खूबसूरती के किस्से,
मुलाकात में जज़्बात हुई,
या फिर आगे खुद आकर के अपनी कलम चलाओगे,
एक परिंदा ऐसा था एक परिंदा वैसा था।
By Dr. Devendra K Prajapati
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