बात सिर्फ
- hashtagkalakar
- Jan 5, 2024
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By Kavita Batra
बात सिर्फ घुटन से बाहर आने की है ,
मुश्किल है मगर ,
नामुमकिन तो नही ।
हक है यह , इसके लिए
किसी के मोहताज तो नही ।
जीवन मैं सबका वक्त सीमित होता है ,
घुटन में ही रहें ऐसा भी ,
जीवन की किताब में,
कोई ज़रुरी पन्ना तो नही।
क्यों रखना पंखो को काटकर ,
क्यों पैरों को रखना,
बेड़ियों में बांधकर है,
ऐसा कोई तेरा ,
जीवन से सौदा भी तो नहीं।
एक बार ही सही ,
रिश्तों को भूलकर तो देख,
खुदको आईने मैं देख, संवार खुदको ,
वक्त के पिंजर में से,
एक लम्हा अपने लिए चुरा भी लिया ,
खुदको आज़ाद करने के लिए,
ऐसा कोई ,
बहुत बड़ा गुनाह भी तो नहीं।
By Kavita Batra
Kya khub likhti hai ap
A wonderful poem, touched my heart.
Awesome