By Garvita Singh
चल कुछ बातें करते हैं
किस किस्म के डर तुझे डराते हैं
क्या है जिससे मेरे पैर कांपा करते हैं
कितनी उम्मीदें टूटी तेरी हैं कभी
कौनसे बेस्वाद लम्हे मुझे दुखाया करते हैं
कितने ही ख्वाब तेरे दरमिया रहते हैं
कितने ही ख्वाब मुझे जगाया करते हैं
आंखें मूंदकर कालिख में तुझे दिखता है क्या
और कैसे वो रंग जो मुझे दिखाई पड़ते हैं
कितनी दफा तू छिपकर रोता भी है
आखिर कब कब मेरे भी आंसू गिरते हैं
होठों पर ये अनोखी मुस्कान जो है
इसके पीछे की खामोशी को बेपर्दा करते हैं
क्या है जो तुझे सुकून देता है
क्या है जिससे मुझे सुकून मिल पाता है
किन बातों पर तू सचमें हंसता है
कौनसे लतीफे मुझे हंसाया करते हैं
ज़रा छोड़कर ज़रूरी जिस्मानी बातें
चल साथ में एक मिसाल गढ़ते हैं
बातों से यादें और यादों से वादों तक
आज रूहानी पन्नो पर एहसास लिखते हैं
चल ना, कुछ बातें करते हैं
By Garvita Singh
बहुत सुन्दर!
👍
Nice👍👏