बसंत उत्सव
- Hashtag Kalakar
- Jan 13
- 1 min read
Updated: Jul 16
By Asha Rani Sharan
इस कविता के भाव कुछ इस प्रकार हैं कि बसंत ऋतु में प्रकृति में बहार आ जाती है, मौसम बहुत खुशनुमा हो जाता हैा खेतों में पीली सरसो का बसंती हवा के झोंके से झुकने की तुलना नई नवेली दुल्हन से की गई है- सरसों के पौधे हवा के झोंकों से ऐसे झुकते हैं जैसे कोई नई नवेली दुल्हन पीला लहंगा पहनी हुई है और उसके सिर से बार-बार उसकी ओढ़नी सरकती जा रही हैा वह झुक झुक कर उठाने की कोशिश कर रही हैा
देखो सखी बसंत उत्सव है आया
चहुँ और हर्ष और उमंग है छायाा
बागों में हरियाली और रौनक आई
रंग-बिरंगे फूलों से प्रकृति गदराई
सुगंधित बयार वातावरण महकाई
भंवरे फूलों पर झूले, तितलियां मंडराई
खेतों में पीली सरसों की क्यारी
बसंती पवन भई मतवारी
पवन झकोरा ऐसे झोरॆ
सरसों की डाली झुक -झुक जाए
मानो नई नवेली दुल्हन शरमाए
सिर से ओढनी सरका जाए
दुल्हन झुक झुक उसे सँवारे
बसंती पवन खुब लहराए
ज्ञान विद्या और बुद्धि की देवी
बसंत पंचमी के दिन पधारतीं
मन का कोना पावन करके
सभी को अपना आशीष दे जातीं
सखी, हर मौसम से सुंदर मौसम
ना ठंड की ठिठुरन न गर्मी की तपिश
सभी के मन को बहुत लुभाता
तभी तो ऋतुराज कहलाता
By Asha Rani Sharan

Comments