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बरकत नहीं खुदा की, अब मुझे पनाह चाहिए

By Shriram Bharti


बरकत नहीं खुदा की, अब मुझे पनाह चाहिए

देखा बहुत अच्छा कर के यहां, अब करने को गुनाह चाहिए

झगड़ कर बैठे हैं अपने मेरे, अब कराने वाला कोई सुलह चाहिए

मेरे अपने खोए हुए हैं घरों में, अब दुआ करने को दरगाह चाहिए।


सह लिया बहुत मैं चिंगारियों की आंच, अब मुझे जलने की वजह चाहिए

ठंडे पड़े मेरे पांव चलते चलते, अब सोने को नरम सतह चाहिए

मैं चला जो जाऊं भी कभी अलविदा कह के, याद करना कुछ तुम लफ़्ज़ मिरे

“करता हूं बातें सारी दिल से दिल तक, मुझे मेरी पहचान इस तरह चाहिए!”


चेहरे मेरे ढेर सारे, ये लोग बताएंगे किस किरदार में रहना चाहिए

मैंने देखे हैं टूटते रिश्ते बातों से, थोड़ी हिम्मत रख के ताना सहना चाहिए

बदलाव है मेरे रिवाज़ में नयापन, जो जमे ना आंखों में तो मुंह पे कहना चाहिए

घाव मेरे दिए बहुत इस ज़िन्दगी ने, ज़माना देख रहा है तो खून भी बहना चाहिए!


लिखने को हजार पन्ने हैं, एक दिल की भी सुनने वाला चाहिए

खोला दिल तो घुसे घुसपैठिए, किवाड़ बन्द करने को ताला चाहिए

जो समझूं तिगड़म दोगलेपन की, ज़ुबां पे मुझे कुत्ता-साला चाहिए

मेरी गलती है कि सबके लिए अच्छा किया, अब मुंह रंगने को कुछ काला चाहिए! 


By Shriram Bharti


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