"फिर से मिलने के लिए किसी बहते तिनके से कहीं "
- hashtagkalakar
- May 11, 2023
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By Amol Mishra
उस बुझी सी राख पर,
सुप्त होती नदी किनारे
कुछ गर्म हवाओं के थपेड़े
अधजली कुछ लकड़ियाँ
स्वेत वस्त्र की काली छाह
और थक चुकी आहों के बीच
मैं देखता तुझे जाता हुआ
और फिर सोचता हुआ
की जब मिले थे हम कभी
तुम उन्मुक्त अहसास,
और जैसे कोई स्वच्छंद
स्पृश, कोमल जैसे पंखुरी
मैं ठिठका , निःशब्द सा
कुछ कुन्द, पत्थर सा सही
और तेरी हंसी में खोया
मैं बहता तिनका सा सही
कुछ अश्रु जब बेबाक हुए
फिर अभी आभास हुआ
कुछ भी बदला तो नहीं
मैं भी वही, तुम भी वही
मैं फिर खोया सा
ठिठका
निःशब्द
बिखरा हुआ किसी तिनके सा
और तुम फिर से वही
उन्मुक्त
स्वच्छंद
एक स्पृश
"फिर से मिलने के लिए किसी बहते तिनके से कहीं "
By Amol Mishra
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