पर्चा
- hashtagkalakar
- Dec 25, 2023
- 1 min read
By Hemalatha Swaminathan
अब तारों से ही बतियाना था,
तो चली आती मेरी छत पर!
फिर मिलकर ढूँढ़ते कुछ सवालों के जवाब, फिर करते बुज़ुर्गों की शिकायत,
वह दोस्तों से मन-मुटाव
वह बच्चों जैसे हव भाव !
अब परियों के देश ही जाना था,
तो चली आती,मेरा आँगन क्या कुछ कम था?
फिर रचा देते गुड्डे गुड्डों की शादी
बसा देते उनका घर!
फिर बहस होती की गुड्डा तेरा या गुड्डी मेरी,
और बसने न देते उनका संसार!
पर अब जो तुम वहाँ हो,
परियों और तारों के संग,
बताओ न- क्या तारे सच्ची चमकते हैं?
दिन में कहाँ चिपते हैं?
क्या तुम्हें मैं वापिस एक टूटते तारे से मांग लूँ?
लो फिर बन गया है पर्चा सवालों का ,
अब इनसे किसे परेशान करूँ?
तुम्हें छत से देखूं या आँगन में आ मिलूं?
बताओ न कैसे यह इंतज़ार ख़तम करूँ?
By Hemalatha Swaminathan
Comments