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परिश्रम

By Shraddha


नभ मुट्ठी में न आएगा, अगर तू न जोर लगाएगा 

क्या सोच रहा तू खड़ा-खड़ा, यूँ मंद हवा में जड़ा- जड़ा |

 कुछ भी न ऐसे होता है, मेहनत का बल तो लगता है 

बादल से भी जो बूँद गिरी, सागर से पानी उठता है |

 नित चलते कदमों को कहना, वो रुके नही वो थमे नही

 जब संग्राम में लाखों बलि देते, तब जीतता सम्राट कही |

इतिहास उधर बढ़ जाता है ,जिस ओर जोश की आहट हो

मशाले खुद जल उठती है ,संकल्पों में यदि ज्वाला हो |

क्यों हार से तू घबराता है , क्यों जीते से जल जाता है 

अरे हार भी उसको मिलती है ,जो कदमों का साहस लाता |

बंध जाती है सारी खुशियाँ, अगर पत्ता भी हिल जाता है 

पर मत डरना उससे, क्योंकि किये का फल ही पाता है |



क्यों दीन-हीन सा बैठ गया, निज गौरव तेरा कहाँ गया

 तू हार गया इतनी जल्दी ,बिन लक्ष्य को भेदे कहा चला |

विजय प्रण तेरा टूट रहा क्यों ,जीत का रंग तेरा छूट रहा

 तू न जाने तेरा नाम अभय ,तू कर अपने साहस की जय |

 नस-नस में तेरे लहर आग की, तू खुद ही तपता सूरज है 

तू चल दे तो काँटे भी फूल ,इसे कठीन समझना तेरी भूल |

तू स्वयं सोच तुझे बनना क्या, हर नर में होता है अंतर 

कोई चमकता हीरे सा, तो कोई चुनता है कंकर |

बस अपने साथ न धोखा करना, छोटी सोच न लेकर जीना

अपनी मंजिल की राहों में, सोच समझकर आगे बढ़ना |

नित दिन हर पल कदम-कदम पर, इतना ज्यादा मेहनत करना 

इतना घिसना इतना पिसना माथे का बन चंदन सजना |


By Shraddha




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17 Comments

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Shikha Jaiswal
Shikha Jaiswal
Jan 17
Rated 5 out of 5 stars.

Very nice Shraddha

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jaipal singh
jaipal singh
Jan 17
Rated 5 out of 5 stars.

Good poem


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Mohammad Hasnain
Mohammad Hasnain
Jan 16
Rated 5 out of 5 stars.

Very nice poetry

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jyotigarggarg5822
Jan 15
Rated 5 out of 5 stars.

Very nice poem

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Aaradhya Jaiswal
Aaradhya Jaiswal
Jan 15
Rated 5 out of 5 stars.

Bhut achi poem


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