By Divya Viswanath
मन यह मेरा हैं देहक रहा
ज्वाला कोई रोम रोम में सुलगृहा ,
स्वयं भस्म न होजाउ इसी क्षण,
अग्नि अश्कोंसे ऐसे हैं बरस रहा
में कौन हूँ?
परिचय क्या हैं मेरा?
मेरा जन्म का उद्देश्य हैं क्या?
क्या हैं मेरी विशेषता ?
यह प्रश्न मुझे हैं झंझोड़ता.
क्या स्नेह में,मातृत्व का क्या चिन्ह में?
आकांक्षाओं के बहाव में?
समुद्र का ,क्या परवाह हूँ ?
क्या नदी के जल का ठहराव में?
क्या यह परिचय मेरा?
क्या यह मेरी विशेषता.
क्या सूर्य का ताप में?
चन्द्रमा का क्या शीतल छाँव में,
नियमोंमें प्रज्ञापूर्व से लींन हूँ
क्रान्ति भी में ,बदलाव में
सभ्यता से गर्वसे प्राचीन हूँ
भाव से नवनवीन में.
शांतिसे सोचु अगर,
यह हैं परिचय मेरा
यह ही मेरी विशेषता.
नयन मेरी यह बोलती,
विचार यही टटोलती,
के,
इंद्रधनुष के भांति विभिन्न में,
श्वेत वर्णसे हु उत्पन में.
यह हैं परिचय मेरा
यह ही मेरी विशेषता.
खुद जो हो
वो खुद से हूँ
न मानो तोः एक कण भी नहीं
कोई इच्छा नहीं कोई प्रण भी नहीं
मानो तोः परिपूर्ण हूँ
मानो तोः संपन्न हूँ
यह हैं मेरी विशेषता
अब अग्नि यह शमन हुआ
यह जानकर मन समाधान हुआ
वैविध्यता ही परिचय मेरा
यह मेरी विशेषता
By Divya Viswanath
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