By Nishant Saini
ना मैं शुन्य पर सवार हूँ,
ना मैं एक क ही पार हूँ।
बीच भवर फशा हूँ,
मैं हर साहिल से लाचार हूँ।
भीड़ में खड़ा अकेला,
मैं तन्हाईओं का प्यार हूँ।
लड़ता हूँ ज़िंदगी से,
मैं अब मौत का यार हूँ।
दुश्मनिया है आबादियों से,
मैं बर्बादियों का खुमार हूँ।
निखारता हूँ गम अपना,
मैं ज़ख्मो का लुहार हूँ।
खामोशियो के जूनून में,
मैं दर्द की गुआर हूँ।
खुद की बंदिशों में,
मैं खुद में ही दरार हूँ।
खड़ा हूँ दूर अपनों से,
मैं दिल का बीमार हूँ।
थी ख्वाहिशें हज़ार मेरी,
अब इन अधूरी हसरतों में मैं हज़ार हूँ।
हूँ तो अच्छा पर किसी काम का नहीं,
मैं लोगो के दिल में वशा यह विचार हूँ।
कल जो अदब ही जरूरी था,
आज पैरो में कुचलता मई वही इस्तिहार हूँ।
होगया हूँ राख सा,
मई आतिशो का सार हूँ।
By Nishant Saini
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