By विकाश कुमार भक्ता
जो मैंने बोया था गुठली आम का,
एक दिन बागीचे की कोने में,
आज सुबह है उसमे फूटा अंकुर,
लाल - लाल कोंपलो के रूप मे।
मैंने देखा उन्हें बड़े ही ध्यान से,
लगा वे नाच रहे है उल्लास से,
मेरे ह्रदय मे उठी एक सिहरन,
जब छुआ उन्हें बड़े ही प्यार से।
उनके इस उल्लास को देखकर,
मेरी आँखें ख़ुशी से भर आयी,
मुझे लगा की मैंने ही,
उन्हें यह सफलता दिलायी।
दूसरी सुबह जब बागीचे मे गया,
देखा वह पौधा टूटा सा बिखरा पड़ा था,
तभी सहसा मुझे यह ध्यान आया,
कल रात एक तूफ़ान आया था।
प्रकृति की उस भयंकर कोप ने उसे,
जीवन के पहले ही चरण मे नष्ट कर दिया,
हाय! इस नन्ही सी जान पर उसने,
तनिक भी रहम न किया।
मैंने ईश्वर से फ़रियाद किया,
तुम्हारा क्या बिगड़ जाता,
अगर तुमने इस नन्हे पौधे को,
फलने - फूलने दिया होता।
By विकाश कुमार भक्ता
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