द्रौपदी चीरहरण प्रसंग पर प्रश्न
- hashtagkalakar
- May 12, 2023
- 2 min read
By Anushka Tyagi
रोते-रोते कहे द्रौपदी,सभा हुई क्यों मौन?
कितने हैं यह धर्म के ज्ञानी पर मेरा यहाँ कौन?
पहला प्रश्न था भीष्म से पूछा, नजरें क्यों कर गई थी गिर?
शीश झुकाकर हाथ बंधाकर, चलता नहीं शासन यूँ फिर।
मिटता है मिट जाए नगर वह, मर्यादा मर गई जहां।
उसकी रक्षा का कैसा वचन, ना रहे वधू का मान जहां।
नारी के अपमान की कीमत,कितनी और चुकाए कौन?
कितने हैं यहां धर्म के ज्ञानी,पर मेरा यहां कौन?
नीति विदुर की चली नहीं क्यों, आज सभी यहां बहरे हैं।
गूंगे हैं,कायर हैं, मेरे घाव बड़े ही गहरे हैं।
अरे! अच्छा होता अंधे होते, सुख के भागी कहलाते।
जुआ नहीं तुम शस्त्र उठाकर,अनुरागी मन बहलाते।
विदुर नीति भी हार गई यहां,चीख-चीख मुरझाए मौन।
कितने हैं यहाँ धर्म के ज्ञानी,पर मेरा यहाँ कौन?
भरत वंश की नग्न सभा में,नेत्र हीन ही अच्छे हैं।
नेत्रहीनता सुखकर है, पर भाव वहाँ ना सच्चे हैं।
धृतराष्ट्र! राष्ट्र ना फूंको, परामर्श यह लाख दिया।
पुत्र मोह में हस्तिनापुर को, बिन चिंगारी राख किया।
कुछ तो बोलो,ज्येष्ठ तात! यूँ उचित नहीं राजा का मौन।
कितने हैं यहां धर्म के ज्ञानी, पर मेरा यहां कौन?
गुरु द्रोण और कृपाचार्य क्या, परिभाषा गए हैं भूल।
जिन्हें शिक्षा देकर फूल बनाया,कैसे वो बन गए हैं शूल।
अरे! क्या शूलों से फूलों की, पत्तियां घायल होंगी अब।
क्यों द्रोण नहीं तुम बोले, पुत्री द्यूत सभा में लाई जब।
इन केशों से बर्बरता के, आगे सारी विपदा गौण।
कितने हैं यहाँ धर्म के ज्ञानी, पर मेरा यहाँ कौन?
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर! गाण्डीव, दे आये क्या दान कहो?
सहनशीलता का मतलब नहीं, नारी का अपमान सहो।
हे! धर्मराज कहलाने वाले, क्या यूँ ही धर्म का पात्र रहे?
हे सर्वश्रेष्ठ गदाधर! बोलो, गदा दिखाने मात्र है ये ?
स्वयं हारा, अधिकार नहीं उसे,छीने आज़ादी सब ओर।
कितने हैं यहाँ धर्म के ज्ञानी, पर मेरा यहाँ कौन?
इन प्रश्नों के उत्तर लेकिन, आज भी भटके रहते हैं।
महाभारत से सीख न ली क्या,चीख-चीखकर कहते हैं।
रहे दुःशासन की प्यास ‘अनु’,नारी की अस्मत खोने की।
वहीं द्रौपदी भी है आग की मूरत,स्वाभिमानी होने की।
हे कृष्ण! फ़िर आकर करदो, कृष्णा की प्रतिज्ञा पूर्ण।
कितने हैं यहाँ धर्म के ज्ञानी,पर मेरा यहाँ कौन?
By Anushka Tyagi
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