By Ekta Jasan
रात का वक़्त 11 बज के 12 मिनट, फगुआ हृवा, आसमान बिना तारों का चाँद का पता नहीं .. सिगरेट ख़त्म, आँखों में पानी, अचानक से बेचैनी, साँस में भारीपन...
शादी हो गई उसकी ज़्यादा वक़्त नहीं गुजरा यही कुछ आठ महीने ही बीते होंगे..
उस वक़्त भी लगा कि क्या ही है! हो जाएगा ठीक सब कुछ एक दिन.. आज भी वही लगता है।
संबंधों को लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए कितना व्यावहारिक (practical ) बना दिया है। जिन रिश्तों का नाम समाज ने नहीं गढ़ा उन रिश्तों में आप अपनी पूरी उम्र
गुज़ार दो आपका संबंध हमेशा नाजायज़ ही रहेगा।
जायज़ तो पति पत्नी हो जाते हैं । हम दोनों कभी शादी नहीं कर सकते ये उसका सोचना था..
होंगी कमियां मेरे अंदर, हज़ार कारण तो उसने उंगलियों पे गिनतियों की तरह गिनवा दिया ठीक है नहीं करना शादी मत कर तुम बस साथ रह लो उम्र भर... उसने कहा उसके लिए भी आसान नहीं है ये सब और ये शादी... पता नहीं कितना आसान रहा होगा उसके लिए की आठ महीनों में ही मुझे
अपनी औक़ात पता चल गई ॥
प्रेमी - प्रेमिकाओं का रिश्ता नाजायज़ संबंध जैसा होता है जिसे अंत में गटर या किसी कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है।
बहुत कुरूप हूँ मैं इन सब बातों को लेकर.. आज कल के नौजवानों को ये बताना होगा कि अगर वो अपने वक़्त और अपने जज़्बातों को भरे बाज़ार में नंगा देखना चाहते हैं तो ही वो अपना ये उबलता खून इस नकारा मोहब्बत के दुनिया को समर्पित करे वरना तो "और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा" फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के इस नज़्म के साथ ऑप सभी को अलविदा
By Ekta Jasan
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