दरिया
- hashtagkalakar
- May 10, 2023
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By Raj Modi
तु दरिया है
सहर में जब भी पलके खुले, बस यही नज़राना हो,
की मै वो किनारे शांत बैठा हूं और तू उछल उछल कर अपनी बातें बयान करती रहे
की तेरी आवाज़ कानों में मीठा सा गीत गाती रहे।
की तु लगातार बह रही हो और में भीगी रेत सा थम सा गया हो
तु देखे खत्म नहीं होती और में शुरू होते ही खत्म
तु मौज है, और में उस खुशी का एक छोटा सा अंश
तु अनंत और में बिंदु।
की तेरी लहेरे बार बार आकर मेरे पैरो को छूने की कोशिश करती रहे,
और में थोड़ा सा दूर हटके तुम्हे चिढ़ाना चाहु।
चंद लम्हे बाद में ख़ुद मेरे पैरो को उसमे भिगोना चाहूं
तेरे छूने से- दोपहर की मंद सी गर्मी में वो थोड़ी सी ठंड के अहसास मे,
में इस तरह कांपता हूं,
शाम के ढलते हुए सूरज के तले जिस तरह कई दूर वो पानी कांपता है
की पूरा सूरज निगल कर लाखो और तारे चमका देती है हररोज,
में मूर्ख जो हररोज उन्न तारो को गिनने कि नाकामियाब कोशिश करता रहूं
जिस पर तुम मंद मुस्कुराती है,
और पूनम में हाथ थमने और नजदीक आती है।
तु दरिया है
और मैं वो रेत जो हरवक्त तुझमें समाने की चाह रखता हूं
तेरी वो लहर जो हमेशा मुझे ले जाने की कोशिश करता है
मगर क्या है वो जो रोकता है?
क्या है की तु आज भी पानी है, और में आज भी रेत?
क्या है की आज भी में गीला होने के बाद भी सूखा हूं?
इतनी बड़ी होकर तु पूरी तरह निर्वस्त्र है
तो मैं क्यों ख़ुद ही की बनाई गई नीतियों के कपड़े ओढु
आखिर में भी कुदरत हूं - तुम्हारी तरह
ना की नियमो से जन्मा हुआ एक इंसान हूं
में भी निर्वस्त्र हूं, तुम्हारी तरह, इस दुनिया की तरह
पर नग्न होना और नंगा होना, ये फर्क समझना नहीं चाहता,
में उनके जैसा इंसान नहीं हूं
अगर होता भी तो वापस मूड के उस रास्ते पर नहीं जाना चाहता
मैं तुम्हे अनंत देखना चाहता हु
तु दरिया है
की मन करता है दिन - रात - सुबह - शाम तेरे सामने आकर बैठा रहूं
लब्जों से नहीं पर आंखो से बाते बयान करू
सपनो की नहीं पर ख्वाहिशों की दुनिया बनाऊ
सिर्फ किनारा नहीं पानी के भीतर तक चला आऊ
बाहर की बनाई गई शांति से ज़्यादा अंदर का शोर भरा मौन सुनू
बाहर की बेरहमी से ज्यादा, अंदर की ख़ूबसूरती देखना चाहू।
मगर,
ये लोग, ये समाज
ये मजहब, ये नीतियां
ये नियमो का बंध
ये दुनिया,
ये होने नहीं देता,
तुम्हे छोड़ नहीं सकता, मगर क्या करू?
हर जगह दरिया को साथ ले जा नहीं सकता
तु दरिया है
की बस अब इंतजार है तो वो कयामत की रात का
जब पूरी दुनिया में तेरी हुकुमत होगी
जब पूरा विश्व तेरी लहरों के आगे झुक गया होगा
तो इस छोटे से अंश का क्या कहेना?
और फिर? कोई प्रश्न पूछने के लिए भी कोई नहीं रहेगा
एक वो कयामत की रात है, और एक आज की ढली हुए शाम
मिलना तो तय है, क्युकी आखिर यही एक रास्ता है
तु दरिया है
पहेले तु अनंत थी,
कयामत में तु अंत है, और तुझमें समाके फिर मैं अनंत
तेरी ताक़त पे भरोसा और मेरे कर्मो पे विश्वास है,
तु दरिया है।
By Raj Modi
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