थक चुकी है ज़िन्दगी
- Hashtag Kalakar
- Jan 13
- 1 min read
Updated: Jul 17
By Naveen Kumar
कटती रही ज़िन्दगी शोक–ए–बाहर में
उलझी हुई है ज़िन्दगी न जाने किस जाल में
न घर का रास्ता मिला न मंजिल का
भटकी हुई है ज़िन्दगी न जाने किस तलाश में
देखता रहा आसमां न जाने किस आस में
उड़ गई हो ज़िन्दगी जैसे किसी के साथ में
खत्म ही रही सहर सूर्य के प्रकाश में
छुप गए दिये सभी इस नई उजाल में
धूप में ही जलती रही ज़िन्दगी न जाने किस इंतेज़ार में
रात आ गई फिर से तन्हाई के साथ में
खूब रोई ज़िन्दगी हल्की बरसात में
देख ले न अश्क कोई पूछ न ले हाल कोई
भीगती रही ज़िन्दगी हल्की बरसात में
थक चुकी है ज़िन्दगी कुछ सबर बचा नहीं
सांस को अब थम कर कि सांस को आराम दूं
कि ज़िन्दगी को अब ज़िन्दगी से आराम दूं
By Naveen Kumar

Comments