तो क्या हुआ
- Hashtag Kalakar
- Oct 4
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By Sarthak Shankar Chaturvedi
गया जो शाख़ छोड़ कर परिंदा… तो क्या हुआ,
ख़िज़ाँ में भी खड़ा रहा ये दरख़्त… तो क्या हुआ।
वो बुझ गया तो रौशनी कुछ कम ज़रूर हुई,
अँधेरी रातों में कोई चराग़ न था… तो क्या हुआ।
उसे गुमान था कि मैं गिर जाऊँगा बिना उसके,
मैं आसमान तक पहुँच गया अकेला… तो क्या हुआ।
वो अपनी रेत की दीवार पे इतराता रहा,
मैं संग-ए-मरमर की बुनियाद पे ठहरा… तो क्या हुआ।
मेरे सफ़र की धूप थी, वो कुछ कदम तलक,
फिर वो भी दूर कहीं जा बिखरा… तो क्या हुआ।
मैं अपने दर्द को भी ताज की तरह रखता हूँ,
वो जख़्म दे गया तो इक निशां... तो क्या हुआ।
By Sarthak Shankar Chaturvedi

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