By Reuben Mathew
मैं यदि कवि हूँ तो इसलिए, क्योंकि तू अस्तित्व में है महाकवि।
मनुष्य भी हूँ तो इसलिए, क्योंकि मुझे बख्शी है तूने अपनी छवि।
तू मत नहीं, किसी के छल का नमूना नहीं।
तू बस तू है, तेरे तुल्य कोई नहीं॥
मेरे भीतर जो समाधान है, तेरे मुझ में होने की पहचान है।
मेरे शब्दों में मिलता फरमान, तेरे निसर्ग का बखान है।
तू बुत नहीं, ज़मीनी कथा का अंश नहीं।
तू बस तू है, तेरा मिलता-जुलता नहीं॥
मैं जब-जब कविता लिखने के लिए अपनी कलम उठाता हूँ।
तेरी अथाह मोहब्बत को पंक्तियों में समझाना चाहता हूँ।
तू मुफ़्लिस नहीं, ऊंघता और सोता नहीं।
तू बस तू है, तेरी उपमा कहीं नहीं॥
सारी कायनात तेरे सर्वशक्तिमान होने का प्रमाण देती है।
तेरी हस्तकला प्रणाली असीम बुद्धि का बाण चलाती है।
तू सीमित नहीं, तेरी कीमत नहीं।
तू बस तू है, तुझ में कोई दोष नहीं॥
मुझे भाता है कि तू मेरी कविताओं का विषय और शीर्षक होता है।
मुझे लिखने का कौशल और हौंसला, तू ही तो देता है।
तू ख्वाब नहीं, मुझे उलझाता नहीं।
तू बस तू है, मुझे असमंजस नहीं॥
तू विश्वास का अधिकारी है, तुझी में भरोसा रखना समझदारी है।
तू मेरी थकान में मेरा विश्राम है, मेरी जान तुझको प्यारी है।
तू धोखा नहीं, छूमंतर होता नहीं।
तू बस तू है, तेरे एवज कोई नहीं॥
तू मेरे उद्धार, मोक्ष, नीतिपरायणता को लेकर अति संजीदा है।
तेरी देह और लहू की बदौलत ही तो मुझ में जीवन ज़िंदा है।
तू मुकरता नहीं, बदलता भी नहीं।
तू बस तू है, मेरी कविता नहीं॥
By Reuben Mathew
बहुत बढ़िया । हृदयस्पर्शी अन्दाज़ । परवरदिगार की ओर एक सांकेतिक संकेत । जारी रखिये ..
Very beautiful poet Reubin sir
Beautifully written poetry Reubin.
It's nice sir I like it ,it so beautiful
A very touching poetry