By Shweta Kumari
जो अपनी ही धड़कनों को सुन सकू ,
वो कुछ खामोश से पल चाहती हूं ।
जो खुद से खुद की गुफ्त गु कर सकूं ,
मै बस वो थोड़ी सी तन्हाई चाहती हूं ।
जो खुद में खुद को देख सकूं ,
मै वो आइना ढूंढ रही हूं ।
जो मेरे जज़बात भी समझ सके ,
मै वो एक दिल ढूंढ रही हूं ।
उलझनों में उलझी ख्वाहिशें मेरी ,
खाली सा आकाश तलाश रही है ।
जो अपना भी गीत गा सकूं ,
मै वो संगीत तलाश रही हूं ।
जो खुल कर फिर मुस्कुराना सीखा सके ,
मै वो महफ़िल चाहती हूं ।
जो निराश क़दमों को हौंसला दे सके ,
मै वो काफिला चाहती हूं ।
अंधेरे में गुम अरमानों को रौशन कर दे ,
वो सूरज चाहती हूं अपने लिए ।
भीड़ में गुम किरदारों को मेरे पहचान सके ,
वो कहानी चाहती हूं अपने लिए ।
जो सदियों तक फिजाओं में रहे ,
वैसे अल्फ़ाज़ ढूंढ रही हूं ।
जो मेरे जाने के बाद भी जिंदा रहे ,
वो पहचान ढूंढ रही हूं ।
अधूरी सी कविता है मेरी ,
अधूरी सी ख्वाहिशें है ।
अधूरी ये उड़ान मेरी ,
मुक्कमल एक चाहत चाहती है......
By Shweta Kumari
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