By Mogal Jilani
मैं कर तो सकता था बयां और भी आगे मगर!
ये ताज़िम है उनकी, के अब जुबां चल नही सकती
चल तो सकती थी कलम और भी आगे मगर!
आगे नाम हे उनका, के अब कलम चल नही सकती
इसी पर करता हु में इख़्तिताम अपनी पूरी बात का
नाम आया है उनका, कि अब बात आगे चल नही सकती।
By Mogal Jilani
Nice
Nice
Nice
Good poem
Nice poem