जमाना !
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Abhay Raj Chand
कभी सोचा भी ना था कि ऐसा जमाना होगा,
जहां हमें गम में भी मुस्कुराना होगा।
मोड़ भी बहुत मिलेंगे मुझे इस सफर में,
पर ना जाने अब कहां मेरा ठिकाना होगा।
न जाने अब कब मिलेंगे वो यार सभी,
अब ना जाने कब यारों का याराना होगा।
अकेला ही निकल पड़ा हूं मैं अपने इस सफ़र में,
न जाने अब कौन से शहर में मेरा आशियाना होगा।
By Abhay Raj Chand

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