By Garvita Singh
चलोगे? ऐसे जहां में,
जहाँ मैं … मैं कम, तुम ज्यादा हूं।
तुम्हारी ही परछाई का,
हिस्सा आधा हूं।
जहाँ बातें हैं बातों से बढ़कर थोड़ी,
जहाँ हर बात से एक याद है जोड़ी।
जहाँ शब्दों से ज्यादा आंखें समझाती हैं।
हँसती हैं, रोती हैं, कभी रिझाती हैं।
जहाँ विस्मय है, विचलन है, विडंबना है,
हर कदम से पहले सांसों का थमना है।
थोड़ा असमंजस है, शायद थोड़ा ज्यादा है,
स्वयं तो बस एक छलिए का प्यादा है।
रातों में रंजिश का डर है,
सुबह साजिश का स्वर है,
छोटी सी प्यारी सी दुनिया,
लिबास में भयावह डगर है।
भूतकाल का भय है।
भय का बस भूत है।
भावनाओं का बहाव,
भयकारी अभूतपूर्व है।
आंखों से ओझल होती एक तस्वीर,
ओस की ओट और उज्ज्वल लकीर…
दोनो के मध्य में एक भीनी सी रेखा है।
पारखी भले जाने, पर तुमने तो देखा है।
उस रेखा से परे एक झील बहती है,
एक मीनाक्षी सुंदरी उसमें रहती है।
मीनाक्ष कुंतल के सिरे दो मोती हैं,
एक से सुबह, एक से रात्रि होती है।
सुबह के सिर पर सच्चाई का ताज है,
रात्रि में सिर्फ छलावे का आगाज़ है।
बहकने को राहगीर आएगा एक रोज़,
तब जानेगा उस रात पर कितने ही राज़ हैं।
राज़ उसका साज हैं, ख़ामोश आवाज़ हैं।
छटपटाए तो छिपालो, ये राज़ लाज हैं।
चमचमाने को छटपटाते हैं,
इस जमाने को पढ़ाते हैं,
हठ करते हैं, होड़ है,
खुदसे खुदकी एक दौड़ में।
भागते हैं, भगाते हैं।
जागते हैं, जगाते हैं।
चलोगे? ऐसे जहां में,
जहां भागना पड़े पर राह न हो,
जहां जागना पड़े पर रात न हो।
चलोगे? ऐसे जहां में,
जहां खुशी सिमटने को आतुर होगी।
चिंता चहकती सी खूब बहादुर होगी।
साथ होने का, साथ सोने का जी होगा,
वक्त की ढली में लम्हा लम्हा घी होगा।
तिनकों से जज्बातों को आंहो की फूंक लगेगी।
भरे भरे से दिल को भी जोरों की भूख लगेगी।
खाली खोखले मन में गड़ी हुई कुछ बातें होंगी,
बातों को यादें बनाने को कई शामें फिर रातें होंगी।
दुनिया की चुप्पी में सुकून की तलाश होगी,
मीलों की दूरी और धक धक दो पास होंगी।
सूनी सी दीवार पर
कलाई से पोंछ कर,
कुछ तस्वीर लगानी है।
कभी घबरा कर,
निकाल फेंक कर,
फिर नई कील की जगह बनानी है।
टूटे कांच को अनदेखा कर,
फिर उसी तस्वीर की नजर उतारी जायेगी।
बारिश रंग छिटकाएगी,
कभी धूप उसपर नाच दिखाएगी।
हवा संग उड़ने को तैयार मेरी किताब के मैले पन्ने,
अपनी तकदीर में तेरे किस्सों को पाके मुस्काएंगे।
कालिख से पुते हुए हार मान चुके हैं जो पहले ही,
माहौल में उठती मीत महक में दोबारा जी पाएंगे।
चलोगे? ऐसे जहां में,
जहां खिलौनों सी रंग बिरंगी एक खिलखिलाहट होगी।
गुमसुम से कोने में कुछ सिसकियों की आहट होगी।
बाहों में भरने को तो बाहों की भी चाहत होगी,
सांसें ये तरसेंगी, इनके तरसने में लानत होगी।
जहां खोए खोए से रहने में ही पाने का सुख हो,
सूरजमुखी सी मीरा मैं, और सूर्य तेरा श्याम मुख हो।
रेशम सी बांधनी से, कलाई में मेरी रंग चढ़े,
तितलियों के पंख पर कोई आयाम सा गढ़ें।
जहां थोड़ा सा डर हो,
कारणों की डगर हो,
पत्थर से इरादों पर,
धार का एक मगर हो।
तुमसे सिर्फ तुम्हारी ही बात हो,
संधली सा साया सदैव साथ हो।
कभी छुअन में एक चुभन सी हो,
हिचकिचाता हुआ चुम्बन भी हो।
पलकों पर उम्मीदें रखके कभी आंखें बंद ना कर पाएं,
उन्हें मूंदकर कूदना हो और वादा बस इतना किया जाए।
चलोगे? ऐसे जहां में,
जहां बातें धुली हुई हो और वादे साफ,
अदृश्य से आंसुओं में सच्चाई की भाप।
कि हाथ तुम्हारा मेरे हाथ का हिस्सा होगा,
तुम्हारा या मेरा नहीं, ये हमारा किस्सा होगा।
चलोगे? ऐसे जहां में,
कि आखिरकार जब अंत आएगा,
दोनो के धड़ को धरा से ढूंढा जाएगा,
तो एक नहीं वहां दो जिस्म मिलेंगे,
शैया में साथ सोए हुए एकसाथ जलेंगे।
कि तुम ना भी होगे तो मुझमें तुम्हारा वास होगा,
साधारण सी हूं तुम्हारा होना ही खास होगा।
कि जान तुम में बसेगी और जान लो इतना,
जान देने में भी क्षण भर संकोच नहीं होगा।
खुदको पाने में खोना है, खोकर ही पाना,
खुदा और खुदी से सब खुद बेखबर होगा।
मेरे कफन में तुम्हें कुछ एहसास लिपटे मिलेंगे।
सफ़ेद से उस कपड़े में कुछ कहानी वो सिलेंगे।
सिलवटों के बीच तुम्हे अक्षर खोजने होंगे,
हमेशा ठंडे रहने वाले ये दो हाथ सहेजने होंगे।
आखिरी बार मेरे माथे से दो घुंघराली लट हटा देना।
मुमकिन हो तो अपने होठ से मेरे चेहरे को सजा देना।
आंखो में आंसू आने ना पाएं,
मेरी अंतिम तस्वीरें धुंधला जाएंगी।
जुदा होने के गम में पहले से नम,
मेरी बंद आंखें भी पानी छलका जाएंगी।
राख होने से पहले भी मैं तुमपे सिहाऊंगी।
खाक हो जाने पर भी खुदको वहीं पाऊंगी।
मेरी सेज से उठती लपटें भी तुम्हे इठलाती नज़र आएंगी।
तुम पास खड़े रहना, तुम्हारे सर्द से दिल को तपाती हुई जाएंगी।
छिटक कर चमकती हुई चार चिंगारियां तुम्हे छूने को आगे आएंगी,
दो कदम पीछे लेना, इस बार की ये छुअन साफ़ जख्म छोड़ जाएंगी।
कलकलाते पानी में मेरे संग मेरी यादें बहा देना,
सर उठा कर पीठ दिखाना, उसी पल भुला देना।
मुड़कर देखोगे तो वापस जाना मुश्किल हो जायेगा।
बहतर है चले जाना, मेरे रुक चुके दिल को भाएगा।
नई सी एक दुनिया बसाना,
कहीं तो फिरसे मन लगाना,
मेरी जगह ना देना किसी को, दिखेगा, दुखेगा…
कोई आए और तुम्हे भाए तो नई जगह बनाना।
उसे मेरे बारे भले ना बताना,
ना ही मेरे ना होने को जताना,
पर आसमां में देख पल भर ही सही,
मुस्कुरा दोगे ना, ऐसे भूलोगे तो नहीं?
वो मुस्कान ही मेरा दिन बना देगी।
तुम खुश हो, मुझे ये धूप बता देगी।
कभी अकेला पाओ खुदको तो फिर याद कर लेना,
एक बार नाम लेना, किसी शीशे से बात कर लेना।
तुम में मैं हमेशा हूं, तुम तब जान लोगे ना,
तुमसे ज्यादा जिद्दी हूं, अब तो मान लोगे, है ना?
झीनी सी एक चादर में फिर खुदको हौले से तुम ढांक लेना।
तुमसे लिपटने की उसकी कोशिश से मेरे प्यार को आंक लेना।
दिल भारी हो जाए तो दो मोती आंख से बहने दो,
मेरा साया घर कर लेगा उन्हें संभाल के रखने को।
दोनो को हथेली में थामे अपने साथ ले जाऊंगी,
खो जाने का डर होगा उन्हें धागों में पिराऊंगी।
दोनों हाथ में एक एक धागा,
धागे में बुनी असंख्य आस होंगी।
आस को आसरा देने की मांग है,
भगवा ही साधु, संतरी सा ढोंगी।
चलोगे? ऐसे जहां में,
जहां बिछड़ने के बाद भी मिलने की आस हो,
नामुमकिन से खयालों में इतना विश्वास हो।
आस होगी कि अगली बारी तुम्हारे पास होगी।
सिर्फ हमे नहीं, किस्मत को भी जोड़ी रास होगी।
चलोगे? ऐसे जहां में…
सोचलो, जानलो,
समझ कर बतादो।
निमिष भर साथ भी काफी है मुझे।
साध लूंगी कभी दिया जो ये बुझे।
तब तक मेरे पास ही रहो,
मीठी सी दो बात सुनो।
हंसके तुम भी कहलो कुछ,
दो चार बातें करलें सच।
तेरी आंखों में चार दिन खुदको देख लूं,
गालों को चूम लूं, हाथों से हाथ सेंक लूं।
हंस लूं तेरे साथ, तेरे साथ थोड़ा रो लूं,
बांध लूं गलबहियों में, कभी ना खोलूं।
चांदनी में चांद तांक कर,
अंधेरी का इंतजार नहीं करते हैं,
पास बैठ, मुझे अपना बना,
तारे गिनते, कुछ बात करते हैं।
By Garvita Singh
सुन्दर रचना! ☺
👍
👌
👏👍
बहुत शानदार