खामोश मुलाकात
- Hashtag Kalakar
- Oct 11
- 1 min read
By Kapil Chugh
एक मुलाकात ऐसी भी थी हमारी
दोनों को थी कुछ ना कहने की लाचारी
तुमने नजरों में ही कुछ बताया
सोए परिंदे को धीमा गीत सुनाया
मैं नादान बुद्धि की बात क्या समझता
क्या तुम्हारी सुनता क्या अपनी कहता
आंखें चुराने के ढंग से चुप रहा
पर इस कोशिश में बहुत सहा
खामोशी में भी कभी जहर होता है
मजबूरी में चुप रहना कहर होता है
जब विदा हुए मैं था कुछ भटका हुआ
बोल-अबोल के मध्य था लटका हुआ
तुमने मेरी उलझन से टकरा कर
विदा कहा थोड़ा मुस्कुरा कर
तुम्हारे जाने के बाद में पछताता रहा
तुम्हारे चेहरे का सूनापन लहराता रहा
चोट मिली तो दवा भी साथ ही मिली
अकेले पलों में तेरी याद की खुशी मिली
सोचता हूं जब फिर कभी हम मिलेंगे
खामोशी के पेड़ पर सरगमी फूल खिलेंगे
By Kapil Chugh

Comments