By Yogesh Kumar Pradhan
क्या पूजित अग्रजों का वंश हूं मैं,
या मात्र इस धूलिकण का अंश हूं मैं,
प्रणेता की कृति का नवीकरण हूं
या उसी रचना का नव विध्वंश हूं मैं।
कुसुम हूं क्या किसी उद्यान का मैं,
या पहन कण किसी चट्टान का मैं,
रचयिता हूं मैं रचनाकार का या
स्वयं सर्जन किसी भगवान का मैं।
अवनी की क्लिष्टता का चारागर हूं,
जो लाए नव किरण या वो सहर हूं,
फिरूं मैं खोजता कब तक स्वयं को
पता न खुद है मुझको मैं किधर हूं ।।
By Yogesh Kumar Pradhan
Yogesh hai tu 😅
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Amazing
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❤️