By Dushyant Singh Sisodia
क्या आसान है, कल को याद करना
उन बातों पे मुस्कुरा कर, फिर उनमें डूब जाना।
क्या आसान है, पिछली बातों को याद कर
चादर में बैठे यूँ सिसक जाना,
उन बातों को याद कर फिर बिखर जाना।
क्या आसान है, इस कमबख़्त दिल को रोज़ मनाना
और कल से कल की ओर एक नया कदम उठाना।
क्या आसान है, बिखरे हुए दिल को फिर सिमट पाना।।
By Dushyant Singh Sisodia
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