By Riya Singla
ऐ मन, तेरी बात मैं कैसे मान लूं,
लड़ने से पहले ही हार मैं कैसे मान लूं।
ज़हन में आता तो बहुत कुछ है,
पर हर चीज़ को सच कैसे मान लूं।
जिंदगी में मिलेंगी तो दो ही चीज़ें,
या तो हार या तो जीत,
फिर हार होने से नाकामयाबी
और जीत होने से कामयाबी कैसे मान लूं।
सोचा तो उसने भी होगा कुछ,
जिसने यह जिंदगी दी है,
फिर मरने से पहले मौत को गले कैसे लगा लूं।
कहने को तो जीतकर भी
खाली हाथ गया था सिकंदर,
कहने को तो श्रीमद्भगवद्गीता कहतीं हैं,
"दुःख-सुख में सम हो जाओ",
कहने को तो बहुत से ज्ञानी पुरुष
इस संसार को त्याग दिये हैं।
कहने को तो यह सब मोह-माया है,
यहाँ हारने वाला भी मिट्टी होगा
और जीतने वाला भी।
फिर मैं अपनी जिंदगी को
अपने पर बोझ कैसे मान लूं,
ऐ मन, तेरी बात मैं कैसे मान लूं।
By Riya Singla
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