By Aleena Kabeer
बिखरी हुई उस ज़मीन पर पैर रखते ही वह उस ओर चल पड़ा जहाँ पहला हमला हुआ था। जलकर राख हो चुकी जमीन पर गिरती मिसाइलों और लड़ाकू-विमानों की खौफनाक दहाड़ को नज़र-अंदाज़ करते हुए उसने नमाज़ अदा की और फिर यासीन पढ़ा। इसके बाद दुआ में दोनो हाथ आसमान की तरफ उठाये।
टीना उसे हैरानी से देख रही थी। उसका जी घबरा रहा था। ऊपर से गुज़रते हर एयरक्राफ्ट की भीषण आवाज़ सुनते ही वो अपने दोनों कानों को हाथों से मानो दबा ही लेती थी।
“ये आप क्या कर रहे हो? पता है ना कि यहाँ आना मना है!” टीना की घबराई हुई आवाज़ को सुनकर उसने हंसकर जवाब देते हुए पूछा- “चलें?” उसने गाड़ी स्टार्ट की ओर दोनों चल पड़ेl पर टीना अभी भी परेशान थीl
दोनों मंज़िल तक पहुंचने ही वाले थे की तभी एक भयंकर धमाके के साथ हर तरफ धुआं फ़ैल गयाl दोनों तुरंत अपने मैले हो चुके सफ़ेद कोट को पहनकर गाड़ी से उतर गएl
उसे यहाँ आये हुए करीब 3-4 दिन हो गए थे। और अब तो वो सफ़ेद रंग भी सफ़ेद नहीं रहा था। यहाँ सफेद का रंग अब लाल था। ख़ून और मिट्टी के साथ सफेद का मानों गहरा रिश्ता साफ़ दिख रहा था। हर तफर बर्बादी का आलम था। कहीं किसी का हाथ अलग पड़ा था तो कहीं पैर। इन मासूमों की लाशों के बिखरे हुए अंगों को भला सकता कैसे जोड़ सकता था।
“मैं थक गयी हूं। कैसे-कैसे लोग है?..... इन्हें तरस क्यों नहीं आता इन मखमली आँखों को देखकर? इन्हें इन्साफ क्यों नहीं मिल रहा है!!”
“इन्साफ?” असलम के होठों पर एक अजीब सी मुसकान थी। “जितना साफ हम सोचते है उतना साफ है नहीं ये इनसाफ की रास्ता। किसकी इनसाफ किसी की नाइंसाफी बनकर रह जाती है।"
“लेकिन इस खून और कुरबानियों को क्या जवाब दूँ अपने खुदा को?”
“वो खुद को खुदा समझ बैठा है।"
“टीना, कितने दिन हो गये हैं तुम्हें रेड -क्रॉस के लिए काम करते हुए?” - असलम ने पूछा।
“तीन महीने।” - टीना ने उत्तर दिया।
वह बस मुस्कुराया और उठ कर सोने के लिए जाने लगा। तभी टीना को कुछ याद आया….
वह बोली - “सुनो! कल फ़िर जाना है क्या?..... वहाँ हमले की चेतावनी दी गयी है।”
असलम फिर से मुस्कुराया।
“आप मेरी हर बात पर मुस्कुराते क्यूँ हो?”, “आपको अपनी जान की परवाह नहीं है क्या?” टीना इस बार बहुत गुस्से में थी।
गुस्से के साथ आये आंसुओं को छिपाकर उस ने खुद को सँभालते हुए आगे कहा - “क्यों बार-बार हस रहे हो? तुम्हें इन लोगों की परवाह नही है तो ठीक है! पर आखिर हमारी जान को भी क्यों खतरे में डाल रहे हो?..... मुझे अपने घर जाना है।”
“मुझे भी अपने घर जाना है। इसलिए हर रोज़ जाता हूँ ….. और हाँ, कल भी जाना ज़रूरी है।” यह सुनकर एक पल के लिए टीना की धड़कन रुक सी गई।
इसी बीच असलम की फॉन बजा -
“मैं तुम्हारी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत की वजह बनना चाहती हूं। मैं खुश हूं कि तुम जिंदा हो।
“मेरे लिये दुआ करना। हो सके तो रोज़ मेरी कब्र पर आकर यासीन भी पढ़ना। मैं इंतजार करूंगी।” सॉरी बीवी की आखिरी आवाज़ ही रिंगटोन है।
“अब बताओ की मैं कैसे न हंसू…. इतनी ताकत जो हैं मेरे पास।” - असलम एक और बार मुस्कुराया और अपने टैंट में चला गया।
सुबह जब टीना उठी तो असलम वहां नहीं था। तभी एक और विस्फोट की आवाज़ सुनाई दी। इस बार टीना मुस्करायी। उसने आसमान की ओर देखा और एक क्रॉस बना दिया।
By Aleena Kabeer
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